सरकार! श्री बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों के त्याग और योगदान का ऐसा ईनाम
श्री बदरीनाथ। राज्य सरकार श्री बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों को उनके पुरखों के त्याग और योगदान का ऐसा ईनाम दे रही है कि उनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
स्वयं को धर्म की चैंपियन समझने वाली भाजपा की उत्तराखंड सरकार जाने अनजाने बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर रही है। उनके पुरखों के त्याग और योगदान को भुलाने के प्रयास हो रहे हैं। दरअसल, होली टाउन विकसित करने के लिए इन दिनों धाम में मास्टर प्लान के तहत तोड़ फोड़ हो रही है।
बड़ी संख्या में तीर्थ पुरोहितों के भवन और जमीन इसकी जद में आ रही हैं। इसके ऐवज में सरकार जिस मुआवजे का ढोल पीट रही है वो अधिकांश तीर्थ पुरोहितों को स्वीकार नहीं है। हां, और सिर्फ हां सुनने के आदि हो चुके सिस्टम को ये बात नागवार गुजर रही है।
दरअसल, तीर्थ पुरोहितों की आशंका में दम है। एक बार मुआवजा लेने के बाद तीर्थ पुरोहितों धाम में संपत्ति विहीन हो जाएंगे। देर सबेर इसकी आंच तीर्थ पुरोहितों के व्यवसायगत अधिकार पर भी आएगी। यही वजह है कि तीर्थ पुरोहित भवन के बदले बदरी पुरी में ही भवन चाहते हैं और जमीन के बदले जमीन।
खास बात ये है कि तीर्थ पुरोहित हमेशा सुधार के पक्षधर रहे हैं। धाम के लिए तीर्थ पुरोहितों ने बड़ी कुर्बानी दी हैं। जेल भी गए। बेहतरी के नाम पर हो रहे मास्टर प्लान का विरोध भी नहीं कर रहे हैं। वो धाम में अपने पुरखों की संजोकर रखी गई विरासत को नहीं खोना चाहते। वो भविष्य में अपने व्यवसायगत अधिकार पर किसी तरह की आंच नहीं आने देना चाहते।
बड़े दराबर के दबाव के सामने प्रशासनिक अधिकारी तीर्थ पुरोहितों की इस भावनाओं की अनदेखी कर रहे हैं। कुछ अधिकारियों का रवैया तो बेहद खेदजनक भी है। ऐेसे अधिकारी सरकारी हथकंडो का डर दिखाकर प्रोपर्टी प्रशासन को सौंपने का दबाव बना रहे हैं।
अधिकारियों को आगे कर अपना मतलब साधने की भाजपा सरकार की ये स्ट्रेटजी ठीक नहीं है। सरकार को प्रभावितों के साथ बात करने स्वयं आगे आना चाहिए। अधिकारियों के कारण बात बिगड़ सकती है। देवस्थानम एक्ट के वक्त भी ऐसा ही कुछ हुआ था।