विश्व पर्यावरण दिवस 2022ः एक पृथ्वी को बचाने का संकल्प
प्रो. गोविंद सिंह रजवार।
सन 1972 में स्टॉकहाल्म में प्रथम मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें पारित किए गए प्रस्तावों को स्टॉकहाल्म मानव पर्यावरण घोषणा के नाम से जारी किया गया। इस घोषणा पत्र में पहला निर्णय था- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की स्थापना और दूसरा निर्णय था- प्रति वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन किया जाना।
वास्तव में प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस सन 1974 में केवल एक पृथ्वी विषय पर आयोजित किया गया। इसके बाद विश्व पर्यावरण दिवस एक ऐसे मंच के रूप में स्थापित हो चुका है, जहां से पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूकता फैलाना एवं इसके संरक्षण हेतु काम करना है। पर्यावरण या पृथ्वी को प्रभावित करने वाली समस्याओं में प्रमुख हैं-वायु, जल, मृदा एवं प्लास्टिक प्रदूषण, समुद्री सतह की ऊंचाई में वृद्धि, गैर कानूनी वन्य जीव व्यापार, खाद्य सुरक्षा एवं सतत उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, वैश्विक उष्णता एवं जलवायु परिवर्तन।
इस दिवस के महत्व के कारण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय विघटन को रोकने हेतु नीति निर्धारण किया जाता है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस को आयोजन इसलिए महत्वपूर्ण है क्यों इसकी स्थपना के 50 वर्ष पूर्ण होना एवं इसका विषय पुनः केवल एक पृथ्वी रखा गया है, जैसा कि इसके स्थापना वर्ष में रखा गया था।
इस वर्ष इसके आयोजन का उददेश्य है- परिवर्तनों के द्वारा प्रकृति के साथ जीवन यापन हेतु समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता को प्रमुखता के साथ दिखाना, जिनको स्वच्छ एवं हरित जीवन शैली के लिए नीतियों एवं इच्छओं के अनुसार किया जाए। केवल एक पृथ्वी विषय व्यक्त करता है कि यह पृथ्वी अनगिनत संपदाओं से सुसज्जित घर है, जिसको मानव की भावी पीढ़ियों के लिए सतत उपयोग के साथ संरक्षित करना आवश्यक है।
पृथ्वी सभी पारिस्थितिक तंत्रों से मिलकर बनी है। केवल मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जिसने पृथ्वी के तंत्रों के विपरीत तरीके से प्रभावित किया है एवं अपनी अनगिनत आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए पृथ्वी के संसाधनां का अनियंत्रित उपयोग किया। स्थित ये बन चुकी है कि मानव के लोभ से भावी पीढ़ियां कई प्रकार की प्राकृतिक संसाधनों के लिए तरसेंगे। कारण कई पादप और जंतु प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ति की कगार पर हैं।
प्रकृति की संरचना, पदार्थों का चक्र एवं ऊर्जा प्रवाह को समझने की आवश्यकता है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को ही पृथ्वी पर हरित प्रजातियां, रसायनिक ऊर्जा अर्थात कार्बोहाइड्रेट जैसे रसायनों का उत्पादन करती है, जो संपूर्ण जीव जगत के जीवन यापन का तो सीधा आधार है या खाद्य श्रंखलाओं के माध्यम से जीवन यापन करते हैं।
पृथ्वी की सभी अजीवित एवं जीवों के मध्य प्राकृतिक संतुलन में एक भी कड़ी का नष्ट होना या उसकी संख्या में परिवर्तन होना पृथ्वी के एवं सभी जीवों के जीवन यापन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। इस क्रिया को पारिस्थितिक दर्शन विज्ञान के द्वारा स्पष्ट किया जाता है। पारिस्थितिक दर्शन शास्त्रियों ने प्रकृति के अवयवों एवं मानव व्यवहार के अध्ययन के आधार पर इन क्रियाओं का दार्शनिक महत्व प्रस्तुत किया है।
क्या मात्र पर्यावरण दिवस मनाने एवं संकल्प लेने से पर्यावरण/ पृथ्वी को बचाया जा सकता है। पूरे विश्व में असंख्य सम्मेलन उक्त विषय पर आयोजित किए जाते है, लेकिन इसकी संस्तुतियों को धरातल पर नहीं उतारा जाता है। कभी-कभी इन संस्तुतियों को विकास में बाधक माना जाता है। विकास पारिस्थितिक सिद्वांतों पर आधारित होना आवश्यक है न कि केवल आर्थिक प्रगति हेतु। भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के एमेजन वनों का ब्राजील एवं अन्य देशों द्वारा अंधाधुंध कटान का आर्थिकी उत्पन की जा रही है, जो कि विश्व के प्रमुख कार्बन अवशोषण क्षेत्रों में में गिने जाते हैं। ये पूरे विश्व एवं पृथ्वी के अस्तित्व के लिए अत्यंत विनाशकारी कदम है। भूटान ने वन एवं अन्य संसाधनों के विनास पर पूर्ण रोक लगाकर एक आदर्श पर्यावरण स्थापित किया है।
गरीब देश सूडान में भी पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध है एवं अपराध करने पर कड़ी सजा का प्राविधान है तथा एक पेड़ काटने पर तीन पेड़ लगाए जाते हैं। भारत के कुछ हिमालयी राज्यों एवं केरल में वन क्षेत्र पर्याप्त मात्रा में हैं, जिससे यहां का पर्यावरण काफी सीमा तक स्वच्छ एवं रक्षित है। बंगलौर शहर में पर्याप्त संख्या में झील एवं सड़कों के किनारे एवं पैदल मार्गों में वृक्षों का संरक्षण किया गया है, जो कि इस शहर के मौसम को नियंत्रित करने में सहायक हैं।
भारत में अभी भी आवश्यक्ता है कि विकास के लिए किए जा रहे पेड़ों के कटान, जहां अतिआवश्यक हो, उसके दुगने अनुपात में वृ़क्षारोपण किया जाए। हालांकि ऐसा प्राविधान है भी। मगर, संबंधित एजेंसी इसका अनुपालन नहीं करते।
अतः पृथ्वी को बचाने हेतु समग्र अभियान चलाए जाने चाहिए जिससे क्रिया आवश्यक हो अन्यथा पृथ्वी का अस्तित्व एवं मानव जाति का जीवन यापन असंभव हो जाएगा।
लेखक फैलो, लीनियन सोसाइटी ऑफ लंदन एवं पूर्व प्रोफेसर वनस्पति विज्ञान हैं।