उत्तराखंडः नासाज राजनीति से नाराज राजनीति तक
देहरादून। उत्तराखंड राज्य राजनीति का सफर तेजी से पूरा कर रहा है। नासाज राजनीति राज्य का स्थायी धरातल बन चुका है और इस पर अब नाराज राजनीति का रंग चढ़ रहा है।
21 सालों से नासाज राजनीतिक को झेल रहे उत्तराखंड के लोग अब नाराज राजनीति के भी अभ्यस्त हो गए हैं। आए दिन नाराज राजनीति के रंग राज्य में दिखते रहते हैं। ये नाराजगी सिर्फ और सिर्फ नेताओं की निजी होती है।
चिंता की बात ये है कि राज्य में नाराजगी से नेताओं के कद तय हो रहे हैं। बवाल काटने वाले नेता राज्य के बड़े नेता कहलाए जाने लगे हैं। बड़े दरबारों में भी नाराज नेताओं की खूब कद्र हो रही है। स्वयं को राजनीतिक अनुशासन का चैंपियन समझने वाली पार्टी में नाराज नेताओं की खूब चल रही है।
बहरहाल, दावे के साथ कहा जा सकता है कि नेताओं की इस राजनीति में राज्य के हित कहीं नहीं होते। हां, हित साधने के लिए राज्य/क्षेत्र के मुददों को ढाल की तरह उपयोग जरूर किया जाता है। लोग तमाम प्रकार के मीडिया में नेताओं की नाराजगी देखते और पढ़ते हैं। इससे ऐसा लगता है कि कोई नेता राज्य के लिए कुर्बान होने जा रहा हो। कुछ समय के लिए ही सही नेता जी के प्रति सहानुभूति भी उमड़ पड़ती है।
कुछ समय यानि वोटिंग के दिन तक के लिए नेता इस प्रकार की सहानुभूति चाहते हैं। कुछ दिनों बाद लोगों को हकीकत भी पता चल जाती है। मगर, तब तक नेताओं के समर्थक जनपक्षीय नेता का परसेप्शन पैदा कर चुके होते हैं।
नाराजगी का ये खेल कुछ नेताओं को इतना रास आ रहा है कि वो आए दिन इसका उपयोग करते रहते हैं। इस तरह से नासाज राजनीति के अयोग्य चेहरे बड़े नेता बनते जा रहे हैं।