आखिर उत्तराखंड आपदाओं से कब सीख लेगा

सीता राम बहुगुणा ।
आपदाओं के अनगिनत घाव झेलने के बावजूद आपदाओं से सीख लेने का हमारा रिकॉर्ड बहुत ही खराब है। एक आपदा के घाव भरते नहीं हैं कि हम दूसरी को न्योता देने की तैयारी शुरू कर देते हैं। परिणाम कुछ समय के अंतराल में हम प्रकृति का कोप भोगने को अभिशप्त हो चुके हैं।
ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के अधिकांश हिस्सों में देखा जा सकता है। आम जन ही नहीं सरकारी सिस्टम भी इसमें पूरी तरह से इन्वाल्व है। इस पर सवाल उठाने वालों को विकास विरोधी करार दिया जाता है। तर्क होते हैं कि विकास कार्यों को कैसे रोका जा सकता है।
आपदाओं को न्योता देते ऐसे विकास कार्यों को उपलब्धि के तौर पर खूब प्रचारित-प्रसारित किया जाता है। ऐसा करते हुए वैज्ञानिकों की सलाह को भी दरकिनार करने से परहेज नहीं किया जाता। बड़ी चतुराई से इससे पैदा हो रहे खतरे को छिपाया जाता है। इस काम में कई छोट-बड़े लोग तर जाते हैं और आम लोगें के हिस्से आपदा के घाव ही आते हैं।
उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद ऐसा कुछ ज्यादा ही हो रहा है। इन दिनों श्रीनगर में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। रेलवे विकास निगम द्वारा बगैर सुरक्षा दीवार के गढ़वाल विश्विद्यालय के चौरास परिसर के क्षतिग्रस्त स्टेडियम को बनाने के लिये नदी किनारे भारी मात्रा में मलवे डंप किया जा रहा है। डंप किये जा रहे इस मलवे के कारण विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई ब्लॉक की सुरक्षा दीवार भी क्षतिग्रस्त हो गई है।
अब बरसात सिर पर है। यदि बगैर ठोस सुरक्षा उपाय के इस स्थान पर मलवा डंप किया जाता रहा तो श्रीनगर में 2013 की यादें फिर से ताजा होने में देर नहीं लगेगी। जानकार इसकी आशंका भी व्यक्त करने लगे हैं। बावजूद जिम्मेदार व्यवस्था इस पर गौर करने को तैयार नहीं है।
ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि खतरे की लगातार बज रही घंटी की अनसुनी की जा रही है। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के समय भी इस स्थान पर जीवीके कंपनी द्वारा भारी मात्रा में मालवा डंप किया गया था।
2013 की बाढ़ में श्रीनगर के भक्तियाना क्षेत्र में हुई तबाही में इस मलवे का बहुत बड़ा योगदान था। इससे उक्त क्षेत्र में खासी तबाही हुई थी। जांच में इस बात के पक्के वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। रेलवे विकास निगम द्वारा चौरास स्टेडियम के पुनर्निमाण करने का स्वागत है। लेकिन बगैर ठोस सुरक्षा दीवार के स्टेडियम पुनर्निर्माण के नाम पर मलवा डंप करने से यकीन मानिए हम एक और आपदा को न्योता दे रहे हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।