शिक्षकों के प्रमोशन के दरवाजे हैं खुलते-खुलते रह जाते हैं
देहरादून। स्कूली शिक्षकों के प्रमोशन की बातें खूब होती हैं। मगर, प्रमोशन हो नहीं पाते। इससे स्कूली शिक्षा कई तरह से प्रभावित हो रही है और बाजारी शिक्षा की मौजा ही मौजा हो रही है।
हिंदी के प्रख्यात कवि कुंवर बेचैन की कविता पहले यूं ही हिलते डुलते हैं, दिल के दरवाजे है खुलते खुलते खुलते हैं। शिक्षकों के प्रमोशन की बातें अक्सर होती हैं। लगता है कि सिस्टम प्रमोशन के दरवाजां को खुलने के लिए हिलाने डुलाने लगा है। दिल के दरवाजे तो खुलते खुलते खुल जाते हैं। मगर, शिक्षकों के प्रमोशन के दरवाजे तो दूर खिड़की भी खुलते खुलते रह जाती है।
शिक्षकों को समय से प्रमोशन न मिलने को व्यक्तिगत मामला मानने की भूल हो रही है। जबकि इसका सीधा-सीधा असर शिक्षा पर पड़ रहा है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद स्कूल आनंदालय नहीं बन पा रहा हैं। दरअसल, छात्र/छात्राओं के स्कूल आनंदलय तभी बन पाएंगे जब शिक्षक खुश रहेगा।
सेवाकाल में एक प्रमोशन के लिए तरसने वाला शिक्षक कैसे खुश रहता होगा समझा जा सकता है। शिक्षक प्रमोशन के लिए तरसेगा तो असर कहां होगा कोई भी समझ सकता है। राज्य के गवर्नमेंट हाई स्कूल और इंटर कालेजों के शिक्षकों के प्रमोशन का दरवाजा आखिर क्यों नहीं खुल पा रहा है।
इसको लेकर कभी डीपीसी, कभी एसीआर तो कभी कोर्ट में मामले होने की बात भी होती रहती हैं। दरअसल, इन सब बातों के निदान के लिए ही सिस्टम होता है। शिक्षकों की स्थिति ये हो गई है कि प्रमोशन में दो-चार माह के विलंब में ही एलटी शिक्षक प्रवक्ता पद पर मिलने वाले विषयगात लाभ से वंचित हो जाता है। यही हाल हेड मास्टर और प्रिंसिपल के पदों पर भी होता है। बगैर प्रमोशन के ही शिक्षक सेवा निवृत्त हो रहे है।
सरकारी स्कूलों में बेहतर महौल और शिक्षकों को बेहतरी हेतु उत्साहित करने के लिए जरूरी है कि समय से प्रमोशन हों।