वरिष्ठता के विवाद में उलझी शिक्षकों की तरक्की
देहरादून। राज्य के गवर्नमेंट मिडिल स्कूलों में तैनात शिक्षकों की तरक्की वरिष्ठता के विवाद में फंस गई है। वरिष्ठता को लेकर स्पष्ट व्यवस्था के बावजूद सरकार/विभाग इस विवाद को डंके की चोट पर सुलझाने से बचता रहा है।
एक समय था शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के बाबुओं को बुला बुलाकर शिक्षक बनाया। स्कूल स्तर पर ही साक्षात्कार होता था। शिक्षक बनें बाबू प्रवक्ता पद तक पहुंचे। संभव है कोई इससे आगे भी पहुंच गया हो। आज शिक्षा विभाग मुनादी करा दे तो भी कोई बाबू शिक्षक बनने के लिए नहीं आएगा। जानते हो क्यों? शिक्षकों को समय से प्रमोशन नहीं मिलता।
शिक्षकों को समय से प्रमोशन न मिलने से किसे नुकसान होता है ? जी हां, नुकसान एजुकेशन सिस्टम का होता है और भुगतते नौनिहाल हैं। इतना स्पष्ट होने के बावजूद आखिर उत्तराखंड राज्य में गवर्नमेंट मिडिल स्कूलों में तैनात शिक्षकों को समय से प्रमोशन क्यों नहीं दिए जाते। जबकि शिक्षा विभाग में धड़ल्ले से औसतन हर तीसरे माह मिनिस्टीरियल कर्मियों के प्रमोशन हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग में एलडीसी से सेवा शुरू करने वाला मिनिस्टीरियल कर्मी 20 साल में प्रमोशन पाकर प्रशासनिक अधिकारी बन रहे हैं। जबकि शिक्षक 20 साल में जहां के तहां हैं। दरअसल, सरकारी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों का मामला खिचड़ी सरकार की तरह हो गया है।
शिक्षकों के नियुक्ति स्रोत/तरीकों में इतनी डायवरर्सिटी है कि आगे चलकर ये विवाद का विषय बन जाते हैं। कम से कम प्रमोशन के वक्त ऐसा होता है। विवाद का विभिन्न स्तरों पर इतने ट्रायल हो जाते हैं कि विभाग भी एक तरह से भ्रमित हो जाता है।
सरकार और विभाग को इससे निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका मामले को ठंडे बस्ते में डालना ही सुझता है। कम से कम स्कूली शिक्षकों के प्रमोशन के मामले में यही स्ट्रेटजी अपनाई जा रही है। सरकार की दरियदिली (व्यापक अनुकंपा/ चुनाव फतह की मंशा) रही सही कसर पूरी करके रख देती।
एक बार फिर से राज्य के गवर्नमेंट मिडिल स्कूलों में तैनात शिक्षकों के प्रमोशन का मामला फंस गया है। प्रमोशन के इस फंसा-फंसी के खेल में कई शिक्षक बगैर प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
ऐसी समस्या के निदान हो सकता है। मगर, जिम्मेदार पदों पर आसीन लोग इस पर गौर करने को तैयार ही नहीं। हर स्तर अपनी नौकरी हो रही है और सरकार के एजेडे से शिक्षा का लीकेज बढ़ रहा है।