मकर संक्रांति भगवान सूर्य का आभार व्यक्त करने का पर्वः स्वामी चिदानंद सरस्वती

मकर संक्रांति भगवान सूर्य का आभार व्यक्त करने का पर्वः स्वामी चिदानंद सरस्वती
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तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। मकर संक्रांति भगवान सूर्य का आभार व्यक्त करने का पर्व है। ये पर्व भगवान श्री सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का प्रतीक है।

ये कहना है परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती का देशवासियों को मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष पर्व की शुभकामनायें देते हुये कहा कि मकर संक्रांति भगवान सूर्य का आभार प्रकट करने के लिये समर्पित है। आज का दिन प्रकृति में व्याप्त प्रचुर संसाधनों और फसल की अच्छी उपज के लिये प्रकृति को धन्यवाद और आभार प्रकट करने का अवसर प्रदान करता हैं। यह त्योहार सूर्य के मकर में प्रवेश का प्रतीक है।

उन्होंने कहा कि आज का दिन गर्मियों की शुरुआत और सूर्य के उत्तरायण होने का भी प्रतीक है। यह दिन शीत ऋतु की समाप्ति का प्रतीक है और पारंपरिक रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का स्वागत करने हेतु मनाया जाता है। देश में पोंगल व बिहू पर्व फसलों की कटाई के समय मनाया जाता है।

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत उस समय हुई जब ब्रह्मपुत्र घाटी के लोगों ने जमीन पर हल चलाना शुरू किया। बिहू पर्व उतना ही पुराना है जितनी की ब्रह्मपुत्र नदी अर्थात हमारे पर्व हमें पर्यावरण और नदियों के संरक्षण का संदेश देते है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पर्यावरण संवर्द्धन के बिना संतुलित आर्थिक विकास सम्भव नहीं हो सकता। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर ही मानव जीवन का अस्तित्व निर्भर करता है। पर्यावरण प्रदूषण और प्लास्टिक से मानव जीवन और प्रकृति पर अनेक दुष्प्रभाव हो रहे है साथ ही इससे आर्थिक असमानता और अस्वस्थ्ता की खाई और चैड़ी व गहरी होती जा है। वास्तव में पर्यावरण और मानव अस्तित्व एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना करना बेमानी है इसलिये जीवन में संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान व प्रकृति का सामंजस्य अत्यंत आवश्यक है।

वर्तमान समय में प्रकृति व संस्कृति के मानवीय संबंधों, सहचर्य व सोच के मध्य दूरी बढ़ती जा रही है, जिसके कारण आज पूरे विश्व को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति व संस्कृति के संयोजन के बिना जो विकास हो रहा है वह पलायन, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिग और अब तो भू-धंसाव जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा हैं इसलिये प्रकृति अनुकूल व्यवहार का पालन करना ही संस्कृति है।

आईये संकल्प ले कि प्रकृति के संरक्षण के साथ ही संस्कृति के विकास की जो समृद्ध और समुन्नत विरासत है उसका संरक्षण और संर्वद्धन करें। प्रकृति व संस्कृति के मध्य बढ़ते असंतुलन को दूर करने तथा सामंजस्य को स्थापित करने हेतु अपने टाइम, टैलेंट, टेक्नॉलाजी और टेनासिटी के साथ हम सभी आगे आये यही संदेश हमारे पर्व और त्यौहार हमें देते हैं।

Tirth Chetna

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