गवर्नमेंट डिग्री/पीजी कॉलेजों में कार्यक्रम ही कार्यक्रम

देहरादून। गवर्नमेंट डिग्री/पीजी कॉलेजों में औसतन हर दिन कोई न कोई कार्यक्रम हो रहा है। जाहिर है इससे कहीं न कहीं कॉलेजों का मूल काम प्रभावित हो रहा होगा। ये बात अलग है कि कोई बोलने और स्वीकारने को तैयार नहीं है। हां, जागरूक छात्र/छात्राएं अब इससे उकताने लगे हैं।
पिछली सदी के सातवें-आठवें दशक में रोडवेज की बसों के बारे में एक मजाक होता था कि बस में हॉर्न के अलावा सब कुछ बजता है। अब ऐसा मजाक सरकारी स्कूलों को लेकर होता है कि यहां पढ़ाई के अलावा सब कुछ होता है।
ऐसा ही कुछ अब हायर एजुकेशन में भी दिखने लगा है। गवर्नमेंट डिग्री/पीजी कॉलेजों में कार्यक्रम ही कार्यक्रम हो रहे हैं। औसतन हर दिन कोई न कोई कार्यक्रम कॉलेजों में हो रहा है। जाहिर है इससे कॉलेजों का मूल काम प्रभावित हो रहा होगा। यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि प्रभावित हो रहा है।
छात्र/छात्राएं तो इससे उकताने भी लगे हैं। जल्द ही अभिभावक भी इस बात को महसूस करने लगेंगे। दरअसल, विशुद्ध राजनीतिक कार्यक्रमों पर शैक्षिक मुलम्मे से उच्च शिक्षा धरातलीय व्यापकता खो रही है। इसका स्थान आभासी व्यापकता ले रही है। ये बात अलग है कि दावे सब कुछ बदल देने और नए दौर के हिसाब से करने को हो रहे हैं।
इस पर जिम्मेदार लोग बोलने और स्वीकारने से बचते हैं। उच्च शिक्षा से अच्छे/बुरे को लेकर आवाज न उठना चिंता की बात है।