आज ही के दिन हुआ था सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों के हितों पर वज्रपात
पुरानी पेंशन बहाली की मांग ने देर भर में पकड़ा जोर
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। उत्तराखंड राज्य के सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों के हितों पर आज के दिन ही वज्रपात हुआ था। इस दिन को शिक्षक/कर्मचारी काला दिवस के रूप में मना रहे हैं। दरअसल, उनसे पेंशन की सुविधा छीनकर एनपीएस लागू की गई है। अब देश भर के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं।
भाजपानीत एनडीए सरकार ने 2002 में राष्ट्र हित के नाम पर सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों की पेंशन समाप्त करने जाल बुना। 2004 आते-आते केंद्र सरकार के कर्मचारियों की पेंशन समाप्त हो गई। तब तक केंद्र से एनडीए सरकार की विदाई भी हो गई।
कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने भी इस कंसेप्ट को आगे बढ़ाया। कई राज्यों ने केंद्र की मंशा के मुताबिक पेंशन समाप्त कर दी। पश्चिम बंगाल में न तो कांग्रेस थी और न भाजपा लिहाजा वहां कर्मचारियों की पेंशन व्यवस्था के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई।
2012 तक पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में भी ये व्यवस्था बनी रही। उत्तराखंड में एक अक्तूबर 2005 को सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन व्यवस्था समाप्त कर दी गई। इसके स्थान पर एनपीएस व्यवस्था लागू की गई। इसको लेकर बड़ी-बड़ी बाते हुई।
इससे अच्छादित कर्मचारियों के रिटायर होने का क्रम शुरू हुआ तो इस एनपीएस की पोल खुलने लगी। इसके साथ ही पुरानी पेंशन बहाली के लिए सरकारी कर्मचारी सड़कों पर उतर आए। देश भर में इन दिनों आंदोलन चल रहे हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड पुरानी पेंशन बहाल कर चुके हैं। पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस पर होमवर्क शुरू कर दिया है।
भाजपा शासित राज्यों की सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। दरअसल, पेंशन की मांग के आंदोलन के बीच हुए तमाम चुनावों में भाजपा को कोई नुकसान नहीं हुआ। लिहाजा पार्टी के लिए अभी ये मुददा नहीं है। भाजपा सरकारी कर्मचारियों के पेंशन को लेकर तमाम कुतर्क भी प्रस्तुत कर देती है।
पेंशन देने से विकास प्रभावित होने का तर्क बड़ी मजबूती के साथ रखती है। हैरानगी की बात ये है कि ऐसे तर्क देने वाले भाजपा के सभी नेता विधायक/सांसद की आजीवन पेंशन लेते हैं।