राज्य गठन के बाद पग-पग पर ठगी और छली गई पौड़ी
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सुदीप पंचभैया
उत्तर प्रदेश के दौर में सबसे रसूखदार शहर पौड़ी उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पग-पग पर ठगा और छला गया। ठगे जाने और छले जाने की पटकथा में भले ही राजनीति/सत्ता और सत्ताधीशों के नाम चस्पा हों। मगर, गौर से देखें तो आम जन से जाने अनजाने हुई चूक की बड़ी वजह के रूप सामने आ जाएंगी।
नवंबर 2000 से पहले जिन लोगों ने पौड़ी देखा होगा, उन्होंने जरूर यहां के रसूख को महसूस किया होगा। आज की पीढ़ी ये रसूख आजादी के पहले से था। मजाक में कहा जाता था कि मरना, बचना और फंसना हो तो पौड़ी आना ही होगा। गीत भी रहा है कि ऐली बेटा रे मेरी पौड़ी। अब ऐसा नहीं है। पौड़ी बुरे दौर से गुजर रहा है। पौड़ी का रसूख तेजी से छीज रहा है। राज्य गठन के बाद जिस शहर की सबसे अधिक दुर्दशा हुई उसमें पौड़ी पहले स्थान पर है।
पौड़ी जिले के लोग इतरा लें कि उन्होंने उत्तराखंड राज्य को सबसे अधिक मुख्यमंत्री दिए। मौजूदा सरकार में सबसे अधिक कैबिनेट मंत्री पौड़ी से हैं। राज्य बनने के बाद पौड़ी के हाथ सिर्फ यही आया। इससे पौड़ी को दूर-दूर तक कोई लाभ नहीं हुआ।
हां, पौड़ी का होने की वजह से उक्त सभी ने लाभ लेने का प्रयास किया। संभवतः लाभ मिला भी हो। अपने लिए सभी धाणी देहरादून में जुटाकर सत्ता के सिंहासन पर पौड़ी की माला अभी भी जपी जाती है। ये बात अलग है कि माला के 108 दानों में से अधिकांश अब देहरादून वाला हूं हो गए। पौड़ी की दुर्दशा का ये सबसे बड़े कारणों में से एक है।
बहरहाल, राजनीति/सत्ता और सत्ताधीशों से इत्तर देखें तो स्थानीय लोगों से भी बड़ी चूके हुई हैं। आज पौड़ी के लिए देहरादून में चिंति लोग तब जाग जाते तो पौड़ी का रसूख और बढ़ता है। मंडलीय कार्यालयों के देहरादून खिसकते वक्त लोगों ने अजीबोगरीब चुप्पी साधी। कुछ कार्यालयों के बहाने ही देहरादून उतर आए।
कार्यालयों के लिए आंदोलन जरूर हुए। मगर, हासिल कुछ नहीं हुआ। आंदोलन से उत्तराखंड राज्य जरूर मिला। मगर, अब उत्तराखंड में आंदोलन से कुछ नहीं मिल रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है ये जागरूक अच्छे से जानते और समझते हैं।
बहरहाल, पौड़ी के रसूख को बचाने के लिए जिस तरह के प्रेशर ग्रुप की जरूरत थी वैसा आज तक नहीं बन सका। हाल के दिनों में फिर से पौड़ी को उसका पुराना रसूख लौटाने के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। ये अच्छी बात है। संभवत पग-पग पर ठगी और छली गई पौड़ी के लोग अब बहुत कुछ समझ गए होंगे।
जरूरत इस बात की है कि पौड़ी के रसूख बचाने के लिए पूर्व में हुए आंदोलनों के अनुभवों से कुछ सीखा जाए। तब कहां चूक हुई थी इस पर गौर किया जाए। पौड़ी को बचाने के लिए राजनीति से इत्तर एकजुटता की जरूरत है। पौड़ी को सिर्फ राजनीतिक सीढ़ी के तौर पर उपयोग करने वालों से बचना होगा।