आंतरिक लोकतंत्रः देवतुल्य कार्यकर्ता बनाम मौका परस्त कार्यकर्ता

ऋषिकेश। मौकापरस्त कार्यकर्ताओं की हर दल में पौबारह है। दल के लिए मरने मिटने वाले देवतुल्य कार्यकर्ताओं पर दूसरे गोत्र के कार्यकर्ता भारी पड़ रहे हैं। दलों के इस आंतरिक लोकतंत्र में नेता जी निराकार साबित हो रहे हैं।
पार्टी विद डिफरेंस का चोला अब किसी के बोलने के लिए भी नहीं रह गया है। राजनीतिक दल पूरी तरह से भ्रमजाल बन गए हैं। इस भ्रमजाल में क्या अपना देवतुल्य और क्या मौका परस्त/हायर कार्यकर्ता सब एक ही दृष्टि से देखे जा रहे हैं। नेता जी और दल की जरूरत सिर्फ चुनाव जीतने की है।
नेता जी के चुनाव जीतने के बाद पूरे पांच साल मौकापरस्त कार्यकर्ताओं की ही चलती है। हर दल के देवतुल्य कार्यकर्ताओं को इसका अब अच्छे से अनुभव भी हो चुका है। इन दिनों नेता जी चुनाव जीतने के लिए जोर लगा रहे हैं तो इसमें भी मौकापरस्त/हायर कार्यकर्ताओं की पौबारह है।
ऐसी पौबारह की नेताजी टोकाटाकी भी नहीं कर पा रहे हैं। जोर से नारे लगाने, बगैर काम के प्रचार करने, स्थानीय मुददों पर राष्ट्रीयता का मुलम्मा चढ़ाने का काम करने वालों को झूम बराबर झूम… करने को शरबत पिलाने और सरसब्ज दिखाने से लेकर व्यवस्था बनाने का काम मौकापरस्त/हायर कार्यकर्ता कर रहे हैं।
इस व्यवस्था को बनाने में वो खूब छीज्जत भी निकाल रहे हैं। यानि मालामाल भी बन रहे हैं। इस काम में देवतुल्य कार्यकर्ता कहीं नहीं टिक पा रहे हैं। अब तो स्थिति ये है दूसरे गोत्र से आए लोग ज्यादा देवतुल्य होने का फील गुड करा रहे हैं।
देवतुल्य कार्यकर्ताओं के मुंह से अब सच निकलने लगा है। मानने लगे हैं कि पांच साल में काम तो कुछ हुआ ही नहीं है। काम न होने की शिकायत करने वाले वोटर्स के स्वर को अब देवतुल्य कार्यकर्ता भी जोर दे रहे हैं।