उत्तराखंड की राजनीति का हरक प्रकरण
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति के हरक प्रकरण से भाजपा और कांग्रेस प्रभावित होंगे। एक राजनीतिक दल को लाभ होगा और दूसरे को हानि। ये बात अलग है कि लाभ कब हानि में बदल जाए कहा नहीं जा सकता।
इन दिनों उत्तराखंड की राजनीति में नैतिकता, विचार, परंपरा आदि,, आदि की बहुत बातें हो रही हैं। ये सब बातें भाजपा से निष्कासित डा. हरक सिंह रावत को लेकर हो रही हैं। सच ये है कि धरातल पर इन बातों का कोई मोल नहीं होता।
चुनावी राजनीति में वोट का मोल होता है और सरकार बनाने के लिए विधानसभा में मुंडी गिनी जाती हैं। इस बात को राजनीतिक दल अच्छे से समझते हैं। अब आम लोग भी काफी हद तक समझ चुके हैं और टीवी पर राजनीतिक प्रपंचों को मनोरंजन के तौर पर लेते हैं।
2016 में कांग्रेस को तोड़ने वाले हरक भाजपा के लिए अच्छे थे। भाजपा को इसका खूब लाभ भी हुआ। भाजपा के पाले से हरक ने भी कांग्रेस पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब भाजपा ने हरक को बाहर का रास्ता दिखा दिया। वो कांग्रेस पार्टी के आउटर में याचक बनकर खड़े हैं। उनको पार्टी में लेने न लेने को लेकर कांग्रेस में विवाद चल रहा है।
विवाद नैतिकता, विचार, परंपरा, नए-पुराने कर्म आदि को लेकर हो रहे हैं। यकीन मानिए इन सब पर राजनीति का लाभ-हानि का फार्मूला भारी पड़ेगा। स्थिति ये है कि हरक प्रकरण से भाजपा को इस चुनाव में उसी प्रकार का नुकसान होने वाला है जैसा कांग्रेस को 2017 में हुआ था।
कांग्रेस को उसी प्रकार का लाभ हो सकता है जैसे भाजपा को 2017 में हुआ था। ये बात अलग है कि लाभ कब हानि में बंदल जाए ये राजनीति के हरक प्रकरण में ही नहीं सभी प्रकरणों पर समान रूप से लागू होता है।