डॉ. भीमराव अंबेडकर और पाकिस्तान

डॉ. भीमराव अंबेडकर और  पाकिस्तान
Spread the love

अंबेडकर की जयंती पर विशेष

डॉ. सुशील उपाध्याय ।

पिछले दिनों एक सज्जन ने टिप्पणी की कि डॉ अंबेडकर अलग पाकिस्तान के समर्थक थे और वे जिन्ना का समर्थन कर रहे थे। यह टिप्पणी अधूरी सोच का परिणाम है। जब तक आप डॉक्टर अंबेडकर को समग्रता नहीं पढ़ते, तब तक इसी तरह के निष्कर्ष निकाले जाते रहेंगे। डॉक्टर अंबेडकर ने किन आधारों पर पाकिस्तान बनने की बात कही, उन आधारों को समझना बहुत जरूरी है और आजादी के सात दशक बाद अब यह बात सही साबित हो रही है कि डॉक्टर अंबेडकर पाकिस्तान के निर्माण को लेकर सही समझ रखते थे।

डॉक्टर अंबेडकर ने 1940 में थॉट्स ऑन पाकिस्तान नाम से किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने कहा कि यदि भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं को भविष्य में शांति के साथ जीना है तो उन्हें पाकिस्तान का निर्माण स्वीकार कर लेना चाहिए। तब उन्होंने तर्क दिया कि क्या संयुक्त भारत एक ऐसी फौज पर भरोसा कर सकेगा जिसका हर तीसरा सैनिक अलग मुस्लिम देश का समर्थक हो और क्या वह अपनी उस आबादी को संभाल पाएगा जिसका हर चौथा व्यक्ति भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठा न रखता हो। इसी किताब में उन्होंने यह सुझाया कि जिस हिस्से में पाकिस्तान बनना है, उस हिस्से से हिंदुओं और गैर मुस्लिम लोगों को समय रहते निकाल लिया जाए। साथ ही, जो पाकिस्तान जाना चाहते हैं, उन्हें सुरक्षित जाने दिया जाए, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी रही कि उस वक्त लोगों को निकाल पाना संभव नहीं रहा। अंततः लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी और करोड़ों लोगों को अपने घर-बार छोड़कर बेघर होना पड़ा।

जो लोग डॉक्टर अंबेडकर को जिन्ना का समर्थक बताते रहे हैं, वे पूरी तरह गलत हैं। उन्होंने अपनी इस किताब में यहां तक लिखा कि कट्टर सोच रखने वाले मुसलमान हमेशा सामाजिक सुधारों का विरोध करेंगे इसलिए भारत को एक प्रगतिशील राष्ट्र बनाने के लिए यह जरूरी है कि जिन लोगों की पाकिस्तान नाम के अलग देश में आस्था है, उन्हें उनके नए देश जाने देना चाहिए। डॉक्टर अंबेडकर के ग्रंथ श्थॉट्स ऑन पाकिस्तानश् पर 1942 में मुंबई में एक कॉन्फ्रेंस भी हुई। इस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर अंबेडकर ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि यदि भारत अपने आपको एक राष्ट्र के रूप में सुरक्षित रखना चाहता है तो उसे एक ऐसी सेना का निर्माण करना पड़ेगा जो भारत राष्ट्र की मूल आत्मा में भरोसा रखती हो। असल में डॉक्टर अंबेडकर भारतीय सेना में उस वक्त पाकिस्तान समर्थक मुसलमानों की बड़ी संख्या की तरफ इशारा कर रहे थे।

इस ग्रंथ में डॉक्टर अंबेडकर ने जो आशंकाएं जताई थी, बाद में वे सच साबित हुई। यदि सरकार ने डॉक्टर अम्बेडकर की योजना को लागू किया होता तो पाकिस्तान बनने के वक्त जिस तरह का कत्लेआम हुआ, उससे बचा जा सकता था। उस वक्त पाकिस्तान के हिस्से के दलित नेताओं ने डॉक्टर अंबेडकर से संपर्क किया तो उन्होंने सुझाव दिया कि जैसे भी हो वे भारत पहुंचना सुनिश्चित करें। उन्होंने पंडित नेहरू से अनुरोध किया कि वे महार रेजीमेंट को पाकिस्तान भेजें ताकि वहां फंसे हुए दलितों तथा भारत आने के इच्छुक हिंदुओं को सुरक्षित निकाला जा सके। यह स्थापित तथ्य है कि उस वक्त जिन हिंदुओं और दलितों ने डाक्टर अंबेडकर की बात नहीं मानी, उन्हें बाद में पाकिस्तान में बहुत बुरे दिनों का सामना करना पड़ा।

यहां यह बात जरूर है कि कहीं ना कहीं जिन्ना के मन में एक दबी हुई इच्छा थी कि यदि भारत का दलित वर्ग उनके साथ आ जाए तो शायद वे पाकिस्तान के भौगोलिक आकार को और बड़ा कर पाएंगे। सम्भवतः इसी कारण उन्होंने डॉ अंबेडकर के राजनीतिक मार्गदर्शक डॉ जोगेंद्र नाथ मंडल को अपने साथ मिला लिया था और उन्हें पाकिस्तान के संविधान के निर्माण का जिम्मा सौंपा था, लेकिन डॉक्टर अंबेडकर जिन्ना के बहकावे में नहीं आए और यह बात उस वक्त सही साबित हुई जब पूरी तरह से निराश और टूटे हुए डॉक्टर जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान छोड़कर वापस भारत आ गए।

यह डॉक्टर अंबेडकर की दूर दृष्टि थी कि उन्होंने 1952 से 1954 के बीच पंडित नेहरू पर लगातार दबाव बनाया कि वे कश्मीर में जनमत संग्रह करा कर इस मामले का अंतिम निस्तारण कर लें अन्यथा की स्थिति में यह मामला आने वाले समय में भारत की अखंडता एकता के लिए बड़ा संकट बनेगा। डॉक्टर अंबेडकर उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने गिलगित और बालटिस्तान में फंसे हुए हिंदुओं, सिखों और दलितों को भारत लाकर बसाने पर जोर दिया। यदि कुछ लोग डॉक्टर अंबेडकर की किताबों और उनके भाषणों से इक्का-दुक्का वाक्य उठाकर किसी निष्कर्ष को प्रस्तुत करेंगे तो यकीनन उनका निष्कर्ष खतरे से खाली नहीं होगा। जो लोग डॉक्टर अंबेडकर को पाकिस्तान निर्माण का समर्थक बताते हैं उन्हें डॉक्टर अम्बेडकर पर लिखी हुई वसंत मून की किताब श्बाबासाहब अंबेडकरश् जरूर पढ़नी चाहिए।

जो महानुभाव डॉक्टर अंबेडकर और जिन्ना को एक पलड़े में रखना चाहते हैं उन्हें क्रिप्स मिशन के सामने डॉक्टर अंबेडकर द्वारा जिन्ना की योजना का विरोध किए जाने की ऐतिहासिक घटना के बारे में भी पढ़ना चाहिए। उस वक्त डॉक्टर अंबेडकर ने जिन्ना की उस योजना का विरोध किया था, जिसमें देश के विधान मंडलों, न्यायालयों, सरकारी नौकरियों और फौज में मुसलमानों को 50 फीसद आरक्षण दिए जाने की मांग की गई थी। इस योजना को क्रिप्स मिशन द्वारा अस्वीकार किए जाने पर डॉक्टर अंबेडकर ने एक बड़ी विजय बताया था। अधूरी सोच रखने वाले लोगों से निवेदन है कि डॉ आंबेडकर पर टिप्पणी करने से पहले एक बार तथ्यों को ठीक से जरूर देख लें।
लेखक- उच्च शिक्षा में प्राध्यापक हैं।

Tirth Chetna

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *