देवप्रयाग झूला पुलः सरकार! आप कहते हो सुरक्षित नहीं, तो जाएं कहां से
देवप्रयाग। राज्य की भाजपा सरकार मानती है कि बाह बाजार झूला पुल पैदल आवाजाही के लिए सुरक्षित नहीं है। सरकार ये नहीं बता रही है कि आखिर लोग आवाजाही के लिए जान जोखिम में न उठाएं तो क्या करें।
सतयुग के तीर्थ देवप्रयाग की संस्थागत उपेक्षा कब से शुरू हुई देवप्रयाग के लोग अच्छे से जानते हैं। लोग समझ रहे हैं कि देवप्रयाग को किस बात की सजा दी जा रही है। बावजूद इसके कुछ ही लोग मुंह खोल रहे हैं। ये बात देवप्रयाग के मूल चरित्र से मेल नहीं खाती।
आज बात बाह बाजार झूला पुल की करते हैं। ये झूला पुल आयु पूरी कर चुका है। मगर, सरकार को इसके बदले नया पुल तो दूर इसकी मरम्मत की भी जरूरत महसूस नहीं हो रही है। सरकार ने पुल के टिहरी और पौड़ी जिले के छोर पर चेतावनी बोर्ड लगा दिए हैं।
इन बोर्डों के माध्यम से लोगों को आगाह किया गया है कि पुल पैदल आवाजाही के लिए सुरक्षित नहीं है। सरकार ने ये बिलकुल सही कहा है। सरकार ये भी जानती है कि विकल्प के अभाव में हजारां लोग हर दिन जान जोखिम में डालकर इस पुल पर पैदल आवाजाही करते हैं। इसमें स्कूली छात्रों की संख्या अधिक है। दरअसल, सरकार और लोक निर्माण विभाग हादसे की स्थिति में ये बता देने के लिए बोर्ड लगाए हैं कि कहा जा सकें कि हमने तो पहले ही कह दिया था कि पुल असुरक्षित है। लोगों को ही जान जोखिम में डालने का शौक था।
नगर पालिका के अध्यक्ष कृष्ण कांत कोटियाल पुल के जर्जर हाल को हर सक्षम मंच पर रख चुके हैं। जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। कोटियाल की शिकायत पर टिहरी जिला प्रशासन ने संबंधित लोनिवि खंड को निर्देशित भी किया है। मगर, हो कुछ नहीं रहा है। दरअसल, राज्य में विकास कार्यों में राजनीति हद स्तर तक पहुंच चुकी है।
यहां प्रशासन का मूल्यांकन और लोगों की मांग तब तक कोई मायने नहीं रखती जब तक माननीय खुश न हों। राजनीतिक विरोध के लिए तो कतई स्थान नहीं है। फिर देवप्रयाग को तो बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा सब कुछ संघर्ष के बूते ही मिला है। हां, इन दिनों संघर्ष को तवज्जो न दिए जाने का दौर है। जागते रहो देवप्रयाग, अपनो की उपेक्षा न करो। कभी त आला दिन।