उत्तराखंड के जंगल उत्सर्जित कार्बन को सोखने में बेहद कारगर: आईआईआरएस

उत्तराखंड के जंगल उत्सर्जित कार्बन को सोखने में बेहद कारगर: आईआईआरएस
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देहरादून।  इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग देहरादून के विज्ञानियों के शोध में इसकी पुष्टि हुई है कि उत्तराखंड के जंगल उत्सर्जित कार्बन को सोखने में बेहद कारगर हैं। प्रदेश और देश के लिए यहां के जंगल कार्बन सिंक की तरह काम कर रहे हैं। इन जंगलों के आधार पर देश संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच पर पर्यावरण संरक्षण के अपने लक्ष्यों को मजबूती से पेश करने के साथ पारिस्थितिक मुआवजा भी हासिल कर सकता है। आईआईआरएस के विज्ञानी पिछले दस साल से उत्तराखंड के वनों की कार्बन उत्सर्जन एवं अवशोषण क्षमता पर शोध कर रहे हैं।

शोध के पहले चरण में विज्ञानियों ने देहरादून में जौलीग्रांट के समीप बडक़ोट रेंज और हल्द्वानी में तराई केंद्र वन प्रभाग में दो कार्बन फ्लक्स टावर (कार्बन प्रवाह टावर) लगाए हैं। इनकी मदद से दोनों वन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन एवं अवशोषण की क्षमता मापी जा रही है। शोध की अगुआई कर रहे आईआईआरएस  के वन एवं पारिस्थितिक विभाग के अध्यक्ष डा. हितेंद्र पड़लिया ने बताया कि वर्ष 2009 में शुरू हुई राष्ट्रीय कार्बन परियोजना के तहत यह शोध चल रहा है। इस प्रोजेक्ट का नाम कार्बन सीक्वेटे्रेशन पोटेंशियल आफ हिमालयन फोरेस्ट है। दून में लगा टावर 5730.33 किलोमीटर स्क्वायर आद्र्र पर्णपाती वन और हल्द्वानी में लगा टावर 2784.56 किलोमीटर स्क्वायर तराई वन का डाटा एकत्रित करने में मददगार साबित हो रहा है।

अब तक के शोध में यह जानकारी सामने आई है कि दोनों ही क्षेत्रों के वन बिल्कुल भी कार्बन उत्सर्जन नहीं करते, बल्कि हर वर्ष दून के वन प्रति एक मीटर स्क्वायर में 750 ग्राम और हल्द्वानी के वन प्रति एक मीटर स्क्वायर में 480 ग्राम कार्बन सोख रहे हैं। यह आंकड़ा श्वसन, जंगल की आग व अन्य हानियों के बाद का है। डा. पड़लिया ने बताया कि गंगा के मैदान समेत कई अन्य क्षेत्रों में वनों की कमी के चलते कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। ऐसी जगहों पर मिश्रित वन तैयार करने की जरूरत है, वरना आने वाले समय में जलवायु में परिवर्तन और तेजी से होगा। शोध में मृदा विज्ञानी डा. एनआर पटेल, डा. सुब्रतो नंदी समेत अन्य लोग काम कर रहे हैैं।

डा. हितेंद्र पड़लिया ने बताया कि पेड़-पौधों की कार्बन सोखने की क्षमता उनकी सेहत पर निर्भर करती है। अगर पत्तियां हरी हैं और पेड़ बूढ़े नहीं हैं, तब तो वह अपने आसपास से कार्बन अवशोषण करते हैं। जबकि, यह सब नहीं होने पर कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं। इसलिए जरूरी है कि सभी वनों की निगरानी हो। समय-समय पर वनों में मिश्रित रूप से पौधों का रोपण किया जाए। बताया कि कार्बन सोखने में मौसम भी विशेष योगदान निभाता है। शोध में यह भी सामने आया है कि बरसात के मौसम में पेड़-पौधों की कार्बन सोखने की क्षमता बढ़ जाती है, जबकि सर्दियों में घट जाती है।

Amit Amoli

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