गुरू पूर्णिमाः गुरू के प्रति कृतज्ञता व समर्पण का दिव्य पर्व

गुरू पूर्णिमाः गुरू के प्रति कृतज्ञता व समर्पण का दिव्य पर्व
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गुगल व अन्य सभी साधन हमें जानकारी देते हैं ज्ञान नहींः स्वामी चिदानंद सरस्वती

तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। गुगल, लाइब्रेरी, सोशल मीडिया व अन्य सभी साधन हमें जानकारियां प्रदान करते हैं ज्ञान नहीं। ज्ञान तो केवल गुरू ही देेते हैं। भारत में आदि गुरू शंकराचार्य से लेकर दिव्य समृद्ध गुरू परंपरा रही है।

ये कहना है परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती का। स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में ओहियो के कॉलेज कॉर्नर में ह्यूस्टन वुड लॉज और कन्वेंशन सेंटर की खूबसूरत झील के पावन तट पर आयोजित चार दिवसीय गुरु पूर्णिमा रिट्रीट का आज समापन हुआ।

इस अवसर पर में अनेक देशों से आये भक्तों ने  स्वामी चिदानंद सरस्वती  के श्री चरणों में जीवन के आध्यात्मिक उत्थान व आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया।

प्रकृति की गोद और गुरू सान्निध्य में आयोजित इस रिट्रीट में ध्यान साधना, मौन साधना, सत्संग, मंत्र जाप, हवन, पूजन और आत्मदर्शन का अद्भुत अनुभव भक्तों को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर अरूबा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका के अन्य प्रांतों से आये श्रद्धालुओं ने जीवन की ग्रंथियों को सुलझाने तथा आध्यात्मिक उत्थान से संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान प्राप्त किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य जी से लेकर भारत की दिव्य समृद्ध गुरू परम्परा को नमन! गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरू के प्रति कृतज्ञता व समर्पण का दिव्य पर्व। गुरू, ग्रंथों के साथ जीवन की ग्रंथियों को भी खोल देते हैं। सभी के जीवन में दिव्य प्रकाश का अवतरण हो और अन्तःकरण ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित व आलौकित हो। आज का दिन दिव्य, मार्गदर्शक ज्योति के सम्मान का प्रतीक है जो हमारे भीतर ज्ञान के प्रकाश को प्रज्वलित करती हैं।

गुरू पूर्णिमा हमें गुरू के पद्चिन्हों पर चलने का संदेश देती है। गुरू पूर्णिमा प्रतिवर्ष हमंेे ज्ञान, श्रद्धा और सद्बुद्धि को आत्मसात करने का बोध कराती है। गुरू, ज्ञान के दाता हैं। वैसे आज के वैज्ञानिक युग में हमारे पास संचार के अनेक साधन हैं। यथा हमारे पास गुगल है; बड़ी-बड़ी लाइब्रेरियां है, सोशल मीडिया है और कई अन्य साधन हैं परन्तु यह सब हमें जानकारियां प्रदान करते हैं ज्ञान नहीं, ज्ञान तो केवल गुरू ही देेते हैं; गुरू, शिष्य के जीवन में ज्ञान का दीप प्रज्जवलित करते हैं। आईये गुरू की शरण में जायंे, जीवन का उद्देश्य खोजें और श्रेष्ठ मार्ग पर बढ़ते रहें।

साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि गुरू के प्रति अगाध श्रद्धा, समर्पण और त्याग का पर्व है ‘गुरू पूर्णिमा’। गुरू हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं, असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। हमारे जीवन के अन्धकार को प्रकाश और जीवन के सारे विषाद को प्रसाद में बदल देते हैं। गुरू दिव्य ज्ञान और दिव्य प्रकाश का अनन्त स्रोत है। गुरू ज्ञान का पुंज हैं; गुरू सूर्य के समान तेजस्वी होते हैं, जो शिष्य के जीवन मंे आध्यात्मिक क्रान्ति लाते हैं। जिन-जिन शिष्यों के जीवन में क्रान्ति आयी उन्होंने दुनिया को एक नयी दिशा प्रदान की।

चाहे गुरू द्रोणाचार्य और अजुर्न हो, चाण्क्य और चंद्रगुप्त हो, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द, इन्होंने इतिहास रच दिया परन्तु शिष्य का जिस प्रकार समर्पण होगा गुरू का कृपा प्रसाद उसी रूप में शिष्य को प्राप्त होता है। जिन शिष्यों ने गुरू के चरण, उनकी शरण और आचरण को अपने जीवन का पाथेय बनाया उनका उद्धार हो गया और उन्होंने दुनिया का भी उद्धार किया।

अमेरिका की रेखा मशरूवाला जी ने बताया कि अमेरिका सहित अन्य देशों में पूज्य स्वामी जी यात्रा पर होते हैं तो वे अपने आयोजनों को नदियों या झीलों के तटों पर आयोजित करने हेतु प्रेरित करते हैं। उनके सारे संबोधनों में नदियों को जीवन प्रदान करने का दिव्य संदेश होता है। उनका मानना है कि प्रकृति ही सबसे बड़ा गुरू है। जो न केवल जीवन बल्कि जीवन जीने के सभी साधन भी प्रदान करती है। गुरूपूर्णिमा के अवसर पर सभी ने मिलकर पौधों का रोपण किया।

Tirth Chetna

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