सरकारी स्कूलों में प्रवेशोत्सव और निजी स्कूलों में सिफारिशोत्सव
ऋषिकेश। सरकारी स्कूल में प्रवेशोत्सव मनाया जा रहा है और निजी स्कूलों में ठसक के साथ सिफारिशोत्सव चल रहा है। प्रवेशोत्सव वाले सिफारिशोत्सव में भी पूरी तरह से शामिल हैं।
सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या क्यों घट रही है ? योग्य शिक्षकों के बावजूद अभिभावक अपने पाल्यों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ा रहे हैं ? इस पर व्यवस्था के स्तर पर ईमानदारी से चर्चा और समीक्षा होनी चाहिए। मगर, ऐसा होता नहीं है।
सतही चर्चा और औपचारिक समीक्षा ही हो पाती है। परिणाम निजी स्कूल चांदी काट रहे हैं और सरकारी स्कूल छात्रों के लिए तरस रहे हैं। सरकारी स्कूल लोगों का ध्यान आकृष्ट करने को प्रवेशोत्सव मना रहे हैं। शिक्षक सेवित क्षेत्र में घर-घर जाकर स्कूल चलो की मुनादी पीट रहे हैं।
निजी स्कूलों में इन दिनों ठसक के साथ सिफारिशोत्सव चल रहा है। एडमिशन के लिए बड़े-बड़ों की सिफारिश चल रही है। नेता जी अपनां के लिए खूब फोन घूमा रहे हैं। ये मौसम निजी स्कूलां को सत्ता के नजदीक जाने का मौका भी मुहैया करा रहा है।
स्कूल के लिए जमीनों की लपेटा लपेटी के बाद अब सरकार ने ही जमीन मुहैया कराने की बात करनी शुरू कर दी है। कुल मिलाकर प्रवेशोत्सव वाले भी सिफारिशोत्सव में कहीं न कहीं शामिल हैं। दरअसल, सरकारी स्कूल सिस्टम के भ्रम के प्रतिबिंब बनकर रह गए हैं।
स्कूल में सब कुछ निःशुल्क को अब समाज संदेह की दृष्टि से देखने लगा है। बाजार इसे अच्छे से करता है और लोगों के मन में सरकारी स्कूलों के प्रति सवाल पैदा हो जाते हैं। आठवीं तक नो डिटेंशन पॉलिसी ने सरकारी स्कूलों को खासा नुकसान पहुंचाया।
सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा या प्रमाण नहीं है कि किसी अभिभावक ने स्कूल में पढ़ रहे अपने पाल्य की फीस माफ की गुहार लगाई हो। मेडिकल/इंजीनियरिंग की पढ़ाई में जरूर अभिभावक फीस में राहत की मांग करते हैं। मगर, सरकार राहत देने से कतराती है।
दरअसल, सरकार अब सब कुछ मुफत में मुहैया कराने को लोक कल्याण मानने लगी है। सरकारी स्कूलों में भी यही कुछ दिख रहा है। परिणाम शिक्षा के लिए संघर्ष का जज्बा समाज से गायब हो रहा है। स्कूल में लिखे होने वाले शब्द शिक्षार्थ आइए, सेवार्थ जाइए पर लोग अब बहुत कम ध्यान देते हैं।