सरकारी स्कूलों में प्रवेशोत्सव और प्राइवेट स्कूल काट रहे चांदी
किताबों का बाजार सिमटने के बाद आई एक्शन की याद
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। शिक्षा की दोहरी व्यवस्था को आत्मसात कर चुका समाज अब बाजारी शिक्षा के फेर में फंस गया है। सिस्टम समाज को इस फेर में और उलझा रहा है। परिणाम सरकारी स्कूलों की शिक्षा बेचारगी के खोल में लिपट रही है।
देश के अधिकांश राज्यों में नए शिक्षा सत्र में प्रवेशोत्सव मनाया जा रहा है। इसके माध्यम से सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने का अभियान चलाया जाता है। कोरोना काल के बाद सरकारी स्कूलों में इसका असर भी दिखा। नामांकन बढ़े। मगर, इस बार हालात पहले जैसे हो सकते हैं। वजह सिस्टम में ही मौजूद हैं।
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र/छात्राओं को जुलाई में किताबें मिलेंगी। शिक्षक/छात्र अनुपात से भी सरकारी स्कूलों की बुनियादी शिक्षा गड़बड़ा रही है। राज्य के पर्यवतीय क्षेत्रों/ कम छात्र संख्या वाले स्कूलों में ये मानक कतई व्यवहारिक नहीं है।
बहरहाल, सरकार के प्रवेशोत्सव के बीच कुकरमुत्तों की तरह खुले प्राइवेट स्कूल चांदी काट रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों के परिसर में अभिभावकों के आंखों में पानी की छप्पाक की तरह सपने डालकर उनकी जेबें ढीली की जा रही हैं। ऐसा सिर्फ एडमिशन में ही नहीं हो रहा है। किताब-कॉपी, पेन-पेंसिल, जूते-मौजे और ड्रेस में भी ऐसा ही कुछ किया जा रहा है। किताबों को लेकर सरकार के अधिकारी तब जागे जब किताबों का बाजार सिमट चुका है।
अभिभावकों की जेब ढीली हो चुकी हैं। किताबों की दुकान वाले अगले साल मिलेंगे कहने लगे हैं। अधिकारी अब छापेमारी कर रहे हैं। इसका अब कोई मतलब नहीं रह गया है। फीस के मामले में शायद ही सरकार कुछ खास करने की स्थिति में हो। हालांकि दावे समय-समय में बड़े होते रहे हैं।