डा. उमेश चमोला की पुस्तक गडोली का विमोचन

डा. उमेश चमोला की पुस्तक गडोली का विमोचन
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तीर्थ चेतना न्यूज

देहरादून। शिक्षक/साहित्यकार डा. उमेश चमोला की पुस्तक गडोली का एक कार्यक्रम में विमोचन किया गया। पुस्तक में शेक्सपियर के 10 नाटकों का गढ़वाली में अनुवाद है।

शनिवार को देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य शिक्षाधिकारी प्रदीप रावत ने बतौर मुख्य अतिथि समेत डायट के प्राचार्य राकेश जुगराणा, रमाकांत बैंजवाल और नंद किशोर हटवाल ने पुस्तक का विमोचन किया।

इस मौके पर मुख्य अतिथि सीईओ, देहरादून प्रदीप रावत ने कहा कि भाषा के संरक्षण न होने से संस्कृति की विविधता में असंतुलन पैदा हो जाता है। इसलिए हर भाषा का संरक्षण किया जाना जरूरी है क्योंकि भाषाएं स्थानीय परिवेश की इकोलॉजी का हिस्सा हैं।

भाषाओं के संरक्षण और समृद्धि में अनुवाद की अहम भूमिका होती है। पुस्तक के लेखक डॉ उमेश चमोला ने कहा कि वर्ष 2020 में उन्होंने लियोटोलस्तोय की 16 अंग्रेजी में उपलब्ध कहानियों का गढ़वाली भाषा मे अनुवाद किया था। उनके इस प्रयास को साहित्य समीक्षकों ने सराहा था। इसलिए उन्हें शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद की प्रेरणा मिली।

उन्होंने बताया कि गडोलि में शेक्सपियर के 10 नाटकों को गढ़वाली भाषा मे अनुदित किया गया है। ये नाटक है रोमियो एंड जूलियट, जूलियस सीजर, हेमलेट, टेमिंग ऑफ द श्रू, मर्चेंट ऑफ वेनिस, ओथेलो, कॉमेडी ऑफ एरर, किंग लियर, टिमोन ऑफ एथेंस और एज यू लाइक इट।

उन्होंने कहा कि गढ़वाली में अनुवाद करते समय इन नाटको के मूल कथ्य में कोई बदलाव नही किया गया है किंतु अंग्रेजी के वाक्यांशों के स्थान पर गढ़वाली की लोककहावतों और मुहावरों का प्रयोग किया गया है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राकेश जुगरान प्राचार्य डायट देहरादून ने कहा कि किसी भी भाषा का दूसरी भाषा मे अनुवाद करना चुनोतिपूर्ण है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप विश्व के साहित्य को अनूदित कर बच्चों तक पहुंचाया जाना जरूरी है। इस दिशा में डॉ चमोला का प्रयास इसलिए भी सराहनीय है कि यह गढ़वाली परिवेश के बच्चों को विश्व साहित्य से जोड़ने में मदद करेगा। उनकी विश्व साहित्य को पढ़ने के प्रति रुचि बढ़ेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ नंद किशोर हटवाल ने कहा कि किसी भी भाषा की शक्ति को जानने के लिए कुछ मानदंड होते हैं जैसे उस भाषा मे कितना साहित्य रचा गया है और दूसरी भाषा से कितना अनुवाद किया गया साहित्य है। इस दृष्टि से डॉ चमोला का प्रयास गढ़वाली भाषा को सशक्त करेगा।

उन्होंने कहा कि गढ़वाली को भाषा न मानकर बोली के रूप में देखा जाना बिल्कुल गलत है। गढ़वाली भाषा इतनी सशक्त है कि विदेशी भाषा के साधारण वाक्यांशों के लिए यहां कई मुहावरे और लोकोक्तियाँ मौजूद हैँ।

डॉ चमोला ने अंग्रेजी के वाक्यांशों के समानांतर लोककहावतों और मुहावरों को खोजकर एक विशिष्ट शोध भी किया है। साहित्यकार रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि लोकभाषा के संरक्षण के लिए विश्वस्तरीय साहित्य को गढ़वाली पाठकों तक पहुंचाना डॉ चमोला की एक बड़ी साहित्यिक उपलब्धि है।

उन्होंने कहा कि डॉ चमोला ने आधुनिक शब्दों के साथ साथ उन शब्दों का भी प्रयोग किया है जो विलुप्ति के कगार पर हैं। काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने कहा कि उनका प्रकाशन उत्तराखंड के साहित्यकारों के स्तरीय साहित्य को प्रकाशित कर आम जन के सामने लाने का प्रयास कर रहा है।

उन्होंने कहा कि गडोली का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि इसमें लेखक ने गढ़वाली भाषा के कठिन शब्दों का हिंदी में भी अर्थ दिया है। कार्यक्रम का संचालन अशोक कुमार मिश्रा ने किया। इस अवसर पर सोबन सिंह नेगी, मोहन पाठक, साहित्यकार शूरवीर रावत, डॉ सत्यानंद बडोनी, एस पी नौटियाल, प्रदीप बहुगुणा दर्पण, गोविंद सिंह रौथाण, डॉ उषा कटियार,सुनील भट्ट, राजेश खत्री, मोहन डिमरी, प्रतिभा कटियार, गोपाल घुघत्याल, रविन्द्र जीना, प्रिया गुसाईं, नितिन कुमार और मनोज महार आदि उपस्थित थे।

Tirth Chetna

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