भुकण्या तै लुकण्या ली ग्यायी ( गढवाळी कहानी)
भुकण्या तै लुकण्या ली ग्यायी
गॉव मा पैल ब्वारी अपर जिठणू अर सुसर नौं नी लींद छेयी। ये कुणी नाम बरजण बुले जांद। कौंशी जब ब्यौं व्हे तै, उंकी सासू न नणद तै बुले कन कौंशी बौं तै सब्बी जिठणू, सुसर, कके ससुर, बड़े ससुर, सासू जर्जू, नौं बतै देन कि यी नाम कतै गिच्च नी निकळण, किलै कि यी सब्ब नाम बरजण व्हाळ छन। अब सै सै मा कौंशी तै भी नाम बरजण आदत पड़ी ग्यायी। अब उ कै नाम बतांद भी छ्यायी त वै नाम मिलद जुलद शब्द बोली कन बतांद छ्यायी। जन कि कै नाम सौणा हूंद त वै कुणी अंध्यरू मैना बुल्द छ्यायी , इनि चैत मैना कुणी ग्यो लौणा मैना कातिक कुणी बग्वली मैना, बैशाख कुणी बिखोती मैना। इनी कै नाम ऐत्वरू हूंद त इतवार कुणी तात बार बुले जांद। मंगल नाम व्हाल त मंगलवार कुणी संगळवार बुले करद छ्यायी। ज्यादा तर ब्वारी सुसर अर जिठण कुणी जोर ही बुल्दन। व्यवसाय आधार पर भी नौं रखे जांद छ्यायी। सासु नाम उंकी जाति या गौं नाम पर बुले जांद छ्यायी।
कौंशी न अपर ज्यूंद रंद कब्बी सुसर जिठण नौं कब्बी नी ल्यायी, अब आदत सी पड़ी गे छेयी, उंक बुल्यां सब्ब समझ जांद छ्यायी कि कै बाबत बात कना। खैर गॉव जन रीति रिवाज तन चलण भी जरूरी छ्यायी। बगत बीतत ग्यायी पढै लिखै हूण बाद अब नाम लीण प्रचलन शुरू व्हे ग्यायी। कौंशी नौन पढ्या लिख्या छ्यायी त उ बुल्दन कि मॉ नाम लीण कुणी त रख्यां छन, नौन बात भी उन सही च कि नाम से ही पछाण हूंद, फिर नौं लीण मा समस्या क्या च। कई बार नाम बरजणा कारण गलत फैमी व्हे जांद छेयी, लेकिन रस्मो रिवाज अर अफू से बड़ू इज्जत कारण कौंशी न कब्बी भूली कन भी नाम नी ल्यायी। कौशी त उंकी सासू न समझे छ्यायी कि नौ इलै नी ले करदन कि कब्बी ससुर जिठण या जर्जू समणी व्हाव गलती से गिच्च बिटी उक नाम निकळ जाल त ठीक नी हूंद उ हमर आदमी (पति ) से उम्र मा बड़ छन, उन भी जर्जू अर जिठण नात मा अर उम्र मा हमेशा बड़ू व्हे करदन। ये कारण नाम बरजे जांद।
बगत बीतत ग्यायी कौशी तीनी नौनू ब्यौ व्हे ग्यायी। ब्वारी तै भी समझै की जिठण सुसर नौ नी ले करदन लेकिन आज पढी लिखी ब्वारी यीं बात पर ध्यान नी दे करदन, अपरि आदमी नौ भी चटेली ले करदन, जन जमन तन चलण पड़द।
एंक दिन कौशी अपर गोर बछरू लेकन गोरू मा जयीं छेयी, दिन भर गोर चरेन टिपेन अर ब्यखन बगत घर लेकन आयी अर गुठयार मा बांधी कन घर ऐ ग्यायी। वेक बाद लैद गौड़ी दूध निकालि बछरू पिजणा कुणी छवाड़ी, अर बके गोर तै सन्नी भीतर बन्दणे छेयी, तबरी गोर गुठयार मा बितीकी गीन, कौशी न भैर एकन द्याख सब्बि गोर चौकी गीन, मुड़ तरफ जनि कळी मुड़ द्याख त घ्याळ लगाण शुरू करी की भुकणया तै लुक्णया ली ग्यायी, ह्वेत ह्वेत झो झो, भुकणया तै लुक्णया ली ग्यायी, हे ब्वारी झट उन्द आव, ब्वारी तै धै लगाण शुरू करी, ब्वारी समझ मा नि आयी कि व्हाई क्या च।
वींन अपरि सास तै पूछ की हेजी व्हाई क्या च, सासू न ब्वाल ब्वारी भुकणया तै लुक्णया ली ग्यायी, फिर भी ब्वारी समझ मा नि आयी कू कै तै ळी ग्यायी। तबरी गाँव द्वी चार लोग कठि व्हे गीन,तब उन ब्वारी कुणी ब्वाल की तुमरी सासू बुना कि कुत्ता तै बाघ ली ग्यायी। ब्वारी न ब्वाल सीध बोली द्याव कि कुत्ता तै बाघ ली ग्यायी। तब बड़े सासू न बते कि बाघ त्यार कके नाम अर कुत्तु तुमर दूसर बूड़ सुसर नाम च। ओहो तब समझ आयी कि सासू बुने छेयी की भुकणया तै लुक्णया ली ग्यायी।
हरीश कंडवाल मनखी कलम बिटी।
नोट : ये मा जू नाम छन उ सब काल्पनिक छन। कैक नाम मिलदू व्हाल त मात्र संयोग मने जाल। यी लेख केवल मनोरंजन कुणी च।