13 का
अंक भय का प्रतिरूप माना जाता है। भारत ही नहीं विश्व के तमाम देशों में 13 के अंक से जुड़े तमाम किस्से कहानियां सुनने को मिलती हैं। आखिर इस अंक का सच क्या है।
दरअसल 13 का अंक एक अंधविश्वास बन चुका है। लोग इसके प्रति अलग धारणाएं बना चुके हैं। ये धारणा भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रचलित है। अंक 13 भय का प्रतिरूप बन चुका है। , लोग इस तारीख को अपना काम ही टाल देते हैं।
आखिर इसका रहस्य क्या है ? दरअसल अंक 13 के भय को विज्ञान की भाषा में ट्रिसकाइडेफ़ोबिया कहते हैं। इस डर से अक्सर लोगों का आत्मविश्वास कम हो जाता है। चीन और अमेरिका जैसे देशों में 13 वां माला या मौहल्ला होता ही नहीं है। 13 वें नंबर की गणना के लिए 12 के बाद (12ए) या (12बी) का प्रयोग किया जाता है।
पश्चिम में ये माना जाता है कि ज्यादातर दुर्घटनाएं इसी तारीख को होती हैं। हमारे देश में भी इस अंक को शुभ नहीं मानते, उदाहरण के तौर पर किसी की मृत्यु का शोक तेरहवें दिन मनाया जाता है। महाभारत के युद्ध में भी अभिमन्यु की निर्मम हत्या 13 वें दिन हुई थी। युद्ध का पलड़ा 13 दिन तक कौरवौं के पक्ष में था।
साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा जिस वर्ष का अंत 13 से लिखा था। यह नहीं गणितज्ञों का भी यही मत है, 13 एक अविभाजित संख्या है, अंक 12 को ही पूर्णाकं माना गया है, एक वर्ष में 12 मास, आधे दिन के 12 घंटे। वैसे वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी (तीन तेरह कर देना)।
ईसाइ धर्म की बात करें तो जीसस की मृत्यु से एक दिन पहले 12 लोगों ने भोजन किया था, तेहरवें मेहमान के रूप में जुडास नामक उनके शिष्य नें उन्हें धोखा देकर पकड़वाया था। इसकी पेंटिग भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। अब इसे डर कहें, या फोबिया 13 का अंक लोगों के मन में तो जरूर खटकता है।