उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में शोध परियोजना लेखन पर कार्यशाला

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में शोध परियोजना लेखन पर कार्यशाला
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तीर्थ चेतना न्यूज

देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय मंे आयोजित शोध परियोजना कार्यशाला में शिक्षकों और शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। कार्याशाला में शोध परियोजना लेखन की बारीकियां बताई गई।

गुरूवार को आयोजित कार्यशाला के आर.ए.वी. नई दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रो. संजीव रस्तोगी और विश्वविद्यालय के बायोमेडिकल संकाय के डॉ. दीपक कुमार सेमवाल मौजूद रहे। कार्यशाला की शुरुआत में डॉ. नंद किशोर दाधीच ने आयुर्वेद में शोध की आवश्यकता पर जोर देते हुए बताया कि आज के समय में तथ्यों पर आधारित दवाओं पर जोर देने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद को विश्व पटल पर एक मुख्य चिकित्सा पद्वति के रूप में पहचान मिल रही है जिसे शोध के माध्यम से और अधिक स्वीकार्य बनाए जाने की आवश्यकता है।

डॉ. दीपक कुमार सेमवाल ने परियोजना लेखन से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी साझा की और बताया कि वर्तमान में भारत सरकार की सीसीआरएएस, आईसीएमआर, डीएसटी, डीबीटी, एनएमपीबी सहित अन्य कौन-कौन सी एजेंसियां अथवा विभाग हैं जो चिकित्सा क्षेत्र में शोध कार्यों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार से परियोजना प्रस्ताव लिखा जाना चाहिए और प्रस्ताव लेखन से पहले मुख्य शोधकर्ता के अनुभव एवं उपलब्ध सुविधाओं सहित अन्य किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है जिनसे शोध प्रस्ताव के स्वीकार होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं।

प्रो. संजीव रस्तोगी ने आयुर्वेद क्षेत्र में क्लिनिकल शोध परियोजनाओं के लेखन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि परियोजना लिखने से पहले शोध विषय का चुनाव, उसके समय से पूर्ण होने की संभावनाएं, विषय विशेषज्ञों से राय मशवरा, परियोजना से समाज को होने वाले फायदे सहित किन-किन महत्वपूर्ण बिंदुओं का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि वह सफलता की दिशा में अग्रसर हो सके। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि आयुष मंत्रालय विभिन्न प्रकार के क्लिनिकल परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। उन्होंने परियोजना के सफल संचालन हेतु शोधकर्ताओं सहित संबंधित संस्थान की भूमिका पर भी विस्तार से बताया।

आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरुण कुमार त्रिपाठी ने इस कार्यशाला की सराहना करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय अपने शिक्षकों को शिक्षा के साथ-साथ शोध और नवाचार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, ताकि समाज को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने विश्वविद्यालय के समस्त शिक्षकों को एक टीम की भावना से कार्य करने हेतु प्रेरित किया।
कार्यशाला में कुल 150 से अधिक शिक्षकों एवं शोधार्थियों ने भाग लिया जिसमें कई प्रतिभागी ऑनलाइन माध्यम से भी जुड़े रहे। इनमें विश्वविद्यालय के ऋषिकुल, गुरुकुल और मुख्य परिसर के अलावा सभी संबद्ध महाविद्यालयों के निदेशक और प्राचार्य भी शामिल थे। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के डॉ. आशुतोष चौहान द्वारा समन्वयन के साथ साथ तकनीकी सहयोग भी प्रदान किया गया।

कार्यशाला में परीक्षा नियंत्रक प्रो. ओ.पी. सिंह, ऋषिकुल के परिसर निदेशक प्रो. डी.सी. सिंह, गुरुकुल के प्रो. विपिन पांडे, मुख्य परिसर के डॉ. आलोक श्रीवास्तव, उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य प्रो. मानव दयाल, हिमालयीय आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रो. अनिल कुमार झा, डॉ. अमित तमादड्डी, डॉ जया काला, डॉ इला तन्ना, डॉ. शैलेन्द्र प्रधान, डॉ राजीव कुरेले, डॉ संजय त्रिपाठी, डॉ. बालकृष्ण पंवार, डा. प्रबोध यरावर, डॉ. मन्नत मारवाह, डॉ. सुनील पाण्डेय सहित अन्य शिक्षक और शोधकर्ता उपस्थित रहे।

Tirth Chetna

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