तेजी से छीज रही उत्तराखंड के नेताओं की संघर्षशीलता

सुदीप पंचभैया।
देवभूमि उत्तराखंड के नेताओं की राज्य के असली मुददों पर संघर्ष करने की क्षमता तेजी से छीज रही है। सुविधा/पद ने राज्य के संघर्षशील रहे नेताओं का पंगु बना दिया है। समाज पर इसका असर कई तरह से दिख और महसूस हो रहा है।
उत्तराखंड राज्य भले ही चार दर्जन शहादत और बड़े संघर्षों के बाद बना हो। मगर, राज्य बनने के बाद इसे सरसब्ज करने के लिए ऐसा कुछ नहीं हुआ। सत्ता का ऐसा नशा चढ़ा कि नेता संघर्ष करना भूल गए और जनता को राज्य के बजाए देश-विदेश के मुददों की खुशबू संूघा दी।
जनता इस खुशबू में इतनी मशगूल हो गई कि उसने राज्य के असली मुददों के लिए सड़कों पर संघर्ष करने वाले संगठनों और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को नकारना शुरू कर दिया। परिणाम भूकानून, मूल निवास, जल, जंगल और जमीन के मुददों पर सत्ता की भाषा प्रचलन में आ गई।
अब तो स्थिति ये है कि राज्य के नेताओं की संघर्षशीलता तेजी से छीजने लगी है। नेता राज्य/क्षेत्र के मुददों के लिए सत्ता से टकराने का साहस भी नहीं कर पा रहे हैं। राज्य की राजनीति में ये देखा जा सकता है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि किसी समुदाय के साथ होने वाले संस्थागत अन्याय के खिलाफ निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी मुंह नहीं खोल रहे हैं।
सत्ता पक्ष और विपक्ष के आलावा जो प्रेशर ग्रुप होता है वो उत्तराखंड में सिरे से गायब हो गया। राज्य के लिए ये सबसे बड़ी चिंता की बात है। इस प्रेशर ग्रुप को जनता को ही संरक्षित करने की जरूरत है। प्रेशर गु्रप के ही आभाव में राज्य के मूल निवासियों के हितों के संरक्षण की बात करने से भी नेता हिचकिचा रहे हैं।
दरअसल, उत्तराखंड में ऐसा माहौल बन गया है कि नेता किसी भी तरह सत्ता के आस-पास ही रहना चाहते हैं। नेता जनता से सिर्फ और सिर्फ वोट के लिए चुनाव के समय ही संवाद कर रहे हैं। जनता के द्वार बहुत से लोग पहुंच रहे हैं। पहुंच रहे लोगों की गरज क्या है बताने की जरूरत नहीं है।
भ्रम के इस घटाटोप के विरोध में जागरूक लोगों की बात का कई तरह से मखौल उड़ाया जा रहा है। समाज में इसका असर कई तरह से दिख रहा है। आगे अन्य तरह से भी दिखने वाला है।
2013 में कांग्रेस में हुई बड़ी टूट के बाद उम्मीद की जा रही थी कि उत्तराखंड में मजबूत क्षेत्रीय दल आकार लेगा। उत्तराखंड के हितों की एडवोकेसी के लिए दिल्ली का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। उत्तराखंड को रेडीमेड मुददों से निजात मिलेगी। उत्तराखंड के ठेठ मुददों पर ही राजनीति होगी। मगर, ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस से टूटे सभी तारे भाजपा के सितारे बन गए।
इन छोटे बड़े सितारों में भाजपा के आभा मंडल में अपने-अपने तरह से टिमटिमाने की होड़ मची हुई है। हर चुनाव से पहले जनता सिर्फ यही कहकर स्वयं को सही साबित करती है कि देखो, देखो ये नेता भी टूटा…..