आमजन के लिए खास थे परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा

आमजन के लिए खास थे परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा
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सुदीप पंचभैया।

देश और दुनिया के उद्योगपतियों में टाटा समूह के 21 साल तक प्रमुख रहे रतन टाटा कुछ हटकर थे। देश के आमजन के लिए रतन टाटा परोपकारी उद्योगपति थे। उनकी नीतियों के केंद्र में आमजन की दुख तकलीफ जरूर होती थी।

उद्योगपति रतन टाटा का नौ अक्टूबर, 2024 को मुंबई ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में निधन हो गया। 86 साल के रतन टाटा की गिनती देश के परोपकारी उद्योगपति के रूप में रही है। उन्होंने अपने जीवन में आम लोगों की बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया। उनके उद्योगों के उत्पाद में भी आम जन की चिंता साफ झलकती थी।

विश्व की सबसे सस्ती कार नैनो इस बात का प्रमाण है। कहा जाता है कि भारत में शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने किसी न किसी रूप में टाटा के उत्पाद का उपयोग न किया हो। या टाटा के वाहन का उपयोग न किया हो। टाटा मोटर्स का नाम तो देश के बच्चों की जुबां से भी सुना जा सकता है। बहरहाहाल, आम जन की चिंता के साथ ही उन्होंने दुनिया में देश की उद्योग समझ का भी डंका बजाया। विकसित देशों के तमाम उद्योगों को खरीदकर विश्व जहां में भारत की धाक जमाने का काम किया।

परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा का बचपन पारिवारिक वजह से संघर्ष में गुजरा। ये टीस उनके साथ जीवन भर रही। 28 दिसम्बर 1937 को बम्बई, ब्रिटिश भारत (वर्तमान मुंबई) में जन्मे रतन टाटा, नवल टाटा और सूनी कमिसारिएट के पुत्र थे। जब रतन टाटा 10 वर्ष के थे, तब वे अलग हो गये। उनकी दादी ने उनकी देखभाल की और उन्हें आगे बढ़ने में मदद की।

रतन टाटा ने कैंपियन स्कूल, मुंबई, कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई, बिशप कॉटन स्कूल, शिमला और रिवरडेल कंट्री स्कूल, न्यूयॉर्क शहर में शिक्षा प्राप्त की। वह कॉर्नेल विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र हैं।

जेआरडी टाटा ने 1991 में टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। रतन टाटा ने अपनी सूझबूझ और प्रबंधकीय गुण से अपने विरोधियों का मुंह चुप करा दिया। कुछ ही साल में उन्होंने टाटा संस और इससे जुड़ी सभी कंपनियों पर पूरी तरह और प्रभावी नियंत्रण कर लिया।

रतन टाटा ने करीब 21 वर्षों तक ग्रुप की बागडौर संभाली। इस दौरान कंपनी का राजस्व 40 प्रतिशत और लाभ कई गुना बढ़ा। उन्होंने भारत बेस्ड इस संगठन को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। इसके लिए उन्होंने टाटा टी को टेटली, टाटा मोटर्स को जगुआर लैंड रोवर तथा टाटा स्टील को कोरस का अधिग्रहण करने में मदद की।

75 वर्ष की आयु पूरी होने पर रतन टाटा ने 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। साइरस मिस्त्री को उनका उत्तराधिकारी नामित किया गया, हालांकि, निदेशक मंडल और कानूनी प्रभाग ने 24 अक्टूबर 2016 को उन्हें हटाने के लिए मतदान किया और रतन टाटा को समूह का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया।

परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा आम जन की शिक्षा, चिकित्सा और स्वच्छ पेयजल को लेकर हमेशा चिंतित रहे। उन्होंने इस दिशा में काम भी किया। देश के युवा तकनीकी के क्षेत्र में आगे आएं इसके लिए टाटा समूह ने 2014 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे को 950 मिलियन डॉलर का ऋण दिया गया और टाटा सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एंड डिज़ाइन (टीसीटीडी) का गठन किया गया। यह संस्थान के इतिहास में अब तक प्राप्त सबसे बड़ा दान था।

टाटा ट्रस्ट्स ने भारतीय विज्ञान संस्थान, न्यूरोसाइंस सेंटर को अल्जाइमर रोग के कारणों के अंतर्निहित तंत्र का अध्ययन करने तथा इसके शीघ्र निदान और उपचार के लिए तरीके विकसित करने हेतु 750 मिलियन रुपये का अनुदान भी प्रदान किया। भारत सरकार ने उन्हें 2008 पदम विभूषण से सम्मानित किया। इसके अलावा देश और दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों ने भी मानद डाक्टरेंट से नावाजा।

परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा का निधन भारतीय उद्योग जगत की अपूरणीय क्षति है। उनके निधन पर देश का आमजन भी दुखी है।

Tirth Chetna

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