हिमालय दिवसः ज्योग्राफिकल सोसायटी ने मौजूदा हालात पर मंथन किया
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। हिमालय दिवस पर ज्योग्राफिकल सोसायटी ऑफ़ सेंट्रल हिमालय के बैनर तले आयोजित वेबीनार में भूगोलवेत्ताओं ने मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करने के साथ ही बेहतरी हेतु सुझाव प्रस्तुत किए।
सोमवार को आयोजित वेबीनार का शुभारंभ सोसायटी की अध्यक्ष एच.एन.बी.गढ़वाल विश्वविद्यालय क़े पौड़ी कैंपस में भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. अनीता रूडोला द्वारा किया गया। उन्होंने सभी अतिथियो का स्वागत किया। प्रथम वक्ता के रूप में कुमाऊं विश्वविद्यालय के नैनीताल परिसर में भूगोल विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रकाश सी.तिवारी ने ं वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन और हिमालय प्रभाव प्रतिक्रियाएं और सतत विकास की विकल्प के बारे में विस्तार से बताया।
कहा कि वर्तमान में हिमालय एक घनी आबादी वाला और तेजी से शहरीकरण वाला पर्वतीय क्षेत्र है। जिसे वर्तमान में पर्यावरणीय परिवर्तनों हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर सामुदायिक आजीविका परिस्थितियों पर भारी नुकसान हो रहा है। और इन परिवर्तनों का दक्षिण एशिया में जल खाद्य और आजीविका सुरक्षा से लेकर अंतरराज्य संघर्षों तक व्यापक प्रभाव पड़ेगा। उनके द्वारा 500 से 1000 घन मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष के बीच जल उपलब्धता के साथ उत्तराखंड एक जल दुर्लभ राज्य है।
उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्र के 18000 गांव में पाइप से जलापूर्ति नहीं है विश्व स्तर पर 2030 तक 700 मिलियन से अधिक लोगों में जल की कमी और सूखा का कारण पलायन करने की संभावना है ।उन्होंने कहा वन हमारी अर्थव्यवस्था संस्कृति परंपराओं और इतिहास का अभिन्न अंग है।
इसके अलावा हमें वनाअग्नि की संवेदनशीलता का आकलन करने वह वन अग्नि क्षेत्र का मानचित्रण करने का वैज्ञानिक विकसित भी हमने बहुत किया परंतु जमीन पर आग से निपटने के लिए भी हमारी क्षमता उत्तम होनी चाहिए ।जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय क्षेत्र में विशाल जनसंख्या और निर्वाह कृषि अर्थव्यवस्था के कारण हिमालय को गंभीर खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित 60ः से अधिक शहरी बस्तियां भूस्खलन की चपेट में है। हमे इन सभी समस्याओं से निपटना होगा । डीएवी पीजी कॉलेज के प्रोफेसर ए.के बियानी ने हिमालय क्या, क्यों और कब तक रहेगा को विस्तार से बताया।
उन्होंने कहा कश्मीर और तिब्बत में दो शिवालिक क्षेत्र श्योक (पुराना) और सिंधु-त्संगपो (युवा) मौजूद हैं। शिवालिक क्षेत्रों में, दो अलग-अलग प्लेटें एक-दूसरे से जुड़ती हैं।
ट्रांस-हिमालय शब्द का इस्तेमाल हिमालय की सीमा से बाहर के लिए किया जाता है और यह यूरेशियन प्लेट का हिस्सा है। कराकोरम, हिंदुकुश और आगे का पूर्वाेत्तर क्षेत्र। अलग-अलग उम्र की अत्यधिक विकृत चट्टानें। लद्दाख ग्रेनाइट 600 किमी लंबा और 80-120 किमी चौड़ा है।
व्याख्यान को समराइज करने का कार्य मिजोरम यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के भारतीय वरीष्ट प्रोफेसर विशम्बर पी सती जी द्वारा किया गया सोसायटी के संरक्षक प्रोफेसर कमलेश कुमार ने बताया कि भूगोल विषय के विकास के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम अति आवश्यकता है जिससे भूगोल विषय के छात्र-छात्राओं को अपने क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं का ज्ञान हो सके।
डॉ किरन त्रिपाठी ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन पी जी कालेज पोखरी चमोली से डॉ राजेश भट्ट ने किया।आफ लाईन कोलेबोरेशन से देहरादून शहर से डॉ मन्जू भण्डारी,पौडी बी जी आर हे न ब केन्द्रीय विश्वविद्यालय से डॉ अनिल दत्त, श्रीनगर से प्रोफेसर बी पी नैथानी, गोपेश्वर से डॉ देवली,पौखाल से कन्हैया,डी बी एस से डॉ कमल सिंह बिष्ट, लोहाघाट से डॉ उपेन्द्र सिंह चौहान,प्रोफेसर एस सी खर्कवाल,शोध छात्र वीर एवं अनेकों छात्र आफलाइन कार्यक्रम को देखा।