डबल इंजन सरकार में ग्रेटर ऋषिकेश के हाथ खाली
सड़कों का बुरा हाल, वीकेंड चरमरा जाती है ट्रैफिक व्यवस्था
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। डबल इंजन सरकार मंे ग्रेटर ऋषिकेश हर दृष्टि से खाली हाथ है। सड़कों के बुरे हाले से मारे ट्रैफिक जाम ऋषिकेश का दम फूल रहा है। परिणाम तीर्थाटन और पर्यटन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
24 सालों में तहसीलों का शतक लगाने वाला उत्तराखंड जिलों के मामले में अभी 13 पर ही है। ऋषिकेश तीन जिलों, देहरादून, टिहरी और पौड़ी का संयुक्त स्वरूप है। इसे जिला बन जाना चाहिए था। मगर, ऐसा नहीं हुआ। अब इसे ग्रेटर ऋषिकेश तो कहा ही जा सकता है।
उत्तराखंड में ऋषिकेश एक मात्र ऐसा शहर है जिसकी पहचान किसी जिले से नहीं है। पौड़ी जिले के स्वर्गाश्रम और लक्ष्मणझूला भी ऋषिकेश है। टिहरी जिले का मुनिकीरेती और तपोवन भी ऋषिकेश। इस तरह से ऋषिकेश को ग्रेटर ऋषिकेश कहा जा सकता है।
बहरहाल, डबल इंजन की सरकार में ग्रेटर ऋषिकेश विकास के नाम पर खाली हाथ है। ग्रेटर ऋषिकेश का नगर निगम क्षेत्र एक अदद पार्किंग के लिए तरस रहा है। यहां वीकेंड और त्योहारों में सड़क पर गुजरने में डर लगता है। जाम से पूरे क्षेत्र का दम फूला दिखता है। इसका असर नेपाली फार्म से लेकर टिहरी जिले के शिवपुरी और पौड़ी जिले के नीलकंठ तक दिखता है।
डबल इंजन सरकार ने पिछले 10 सालों से इसकी बढ़ती जरूरतों पर गौर नहीं किया। परिणाम भीड़ से अब तीर्थनगरी ऋषिकेश का दम फूलने लगा है। चारधाम यात्रा, कांवड़ यात्रा, वीेकेंड और छुटिटयों में तीर्थनगरी ऋषिकेश जाम का पर्याय बन गई है।
देहरादून जिले के नेपाली फार्म से शुरू होने वाला जाम टिहरी जिले के शिवपुरी और पौड़ी जिले के नीलकंठ क्षेत्र तक देखा जा सकता है। कुल मिलाकर मारे जाम के तीर्थनगरी ऋषिकेश का दम फूल रहा है। इसका असर तीर्थाटन और पर्यटन पर दिखने लगा है। जाम से परेशन लोग यहां से अच्छे अनुभव लेकर नहीं लौट रहे हैं। यही हाल रहा तो लोग यहां आने से कतराने लगेंगे।
ग्रेटर ऋषिकेश में दो सांसद, दो कैबिनेट मंत्री तीन जिलों, देहरादून, टिहरी और पौड़ी के संयुक्त स्वरूप तीर्थनगरी ऋषिकेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। मगर, कभी भी यहां की समस्याओं के निदान को कम्बाइंड टास्क सामने नहीं आया।
विकास के नाम पर सांसद/विधायक निधि के कार्य और डिस्ट्रिक्ट प्लान, नगर निकाय का चूना डाल विकास तक ही तीर्थनगरी सीमित होकर रह गई है। तीर्थनगरी ऋषिकेश के विकास के लिए बड़ी योजना की जरूरत है।
ऐसी योजना जो धरातल पर दिखे। हर तीसरे महीने मीडिया में जाम से बचाने के लिए बन रहे प्लानों को अलग-अलग तरह से प्लाट करने से अब काम चलने वाला नहीं है।