78 वां स्वतंत्रता दिवस और विकसित भारत का राग
सुदीप पंचभैया।
देश के लोग 78 वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना चुके हैं। इसकी थीम विकसित भारत पर खूब चर्चाएं हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले के प्राचीर से 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य पर बोल चुके हैं।
15 अगस्त 1947 के बाद भारत ने सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय तरक्की की है। विश्व स्तर पर देश का मान सम्मान बढ़ा है। हमारी मेधा का डंका दुनिया में बजा है। इसका श्रेय देश के आम लोगों को जाता है। राजनीतिक व्यवस्था ने इसमें फैसिलिटेटर का काम किया है।
इन 78 सालों का सिंहावलोकन करें तो हम पाएंगे की देश की आर्थिक, सामाजिक से लेकर शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी आदि के क्षेत्र में खूब तरक्की हुई है। हम अपनी तरक्की पर इतरा भी सकते हैं। राजनीतिक व्यवस्थाएं हर तरक्की और हर बेहतरी का श्रेय अपने-अपने अंदाज में लेती रही हैं और आगे भी ये क्रम चलता रहेगा। मगर, कुछ सवाल ऐसे हैं जो तरक्की पर सवाल खड़े करते हैं।
इन सवालों में सबसे बड़ा सवाल नैतिकता का है। हम लाख दावा करें सच ये है कि समाज में नैतिकता और आदर्श स्थिति तेजी से छीज रही है। बगैर नैतिकता के तरक्की और खुशहाली समाज में कैसे हालात पैदा ये अब बताने की जरूरत नहीं है। हर दिन घर से लेकर कार्य स्थल तक आपे इसके महसूस करते हैं।
इसके तमाम दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि अब नैतिकता का पाठ शिक्षा से भी दूर होने लगा है। अब दिखाने के लिए भी नैतिकता की बात नहीं हो रही है। दरअसल, समाज नैतिकता से दूर हो रहा है या हो चुका है।
नैतिकता के हास का क्रम राजनीतिक व्यवस्था से शुरू हुआ और अब इसकी एडवोकेसी करने वाले हर क्षेत्र में उपलब्ध हैं। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की नैतिकता का अपने-अपने हिसाब से शल्य चिकित्सा करना अब बड़ा प्रोफेशन बन चुका है।
नैतिकता के सवालों को समाज अपने-अपने हिसाब और समय से परिभाषित करने लगा है। इसमें जाति और धर्म का तड़का भी लगने लगा है। दरअसल, नैतिकता को एक पैमाने पर परखने का की परिणाम है कि अच्छ-बुरे, सत्य-असत्य में कौन सही और कौन गलत एडवोकेसी पर निर्भर करने लगा है। बुरे और असत्य के पक्ष में तर्क गढ़ने वाले अधिक हैं तो समझ लीजिए बुरा और असत्य ही ठीक है।
आप अपने आस-पास तमाम मामलों में ऐसा महसूस कर सकते हैं और देख सकते हैं। ये समाज का स्थायी गुण बनने लगा है। जीवन में नैतिकता अब दुर्लभ जैसी होने लगी है। नैतिकता की बात करने और इसके मुताबिक जीवन जीने वाले अब हर स्तर पर परेशान हो रहे हैं। वो स्वयं को मिस फिट मानने लगे हैं। ये चिंता की बात है।
कुल मिलाकर समाज में सिमट रही नैतिकता का असर विकसित भारत पर कई तरह से दिखेगा। इसका असर संस्कृति पर भी दिखने लगा है। भारत नैतिकता और नैतिक बल की वजह से ही दुनिया जहां में अलब है। इसकी संस्कृति मंे नैतिकता का जोर है यही वजह है कि आकां्रता भी इसे समाप्त नहीं कर सकें।
बेशक भारत 2047 तक विकास भारत बन जाएगा। विकसित भारत में नैतिकता रहेगी तो भारत विकसित राष्ट्र से हटकर विकसित राष्ट्र होगा। ऐसा राष्ट्र जिसका अनुसरण हर कोई करना चाहेगा। यदि नैतिकता नहीं होगी तो विकास जरूर होगा। सुविधाएं बढ़ेंगी। आर्थिकी अच्छे होगी। मगर, वो बात नहीं होगी जो हमे और अन्य अलग करती है।