क्या से क्या हो रहा सुंदर देहरादून साक्षर देहरादून
प्रशांत मैठाणी
सुंदर आबोहवा और अच्छी स्कूली शिक्षा के लिए विश्व भर मंे पहचान रखने वाला शहर देहरादून में क्या से क्या हो रहा है। सुंदर देहरादून साक्षर देहरादून के पटट पूरे शहर में दिख जाएंगे, मगर, अब धरातल से सुंदर भी गायब हो रहा है और साक्षरता आंकड़ा भर रह गई है।
देहरादून को भारत की स्कूलों की राजधानी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। स्कूलों के अलावा यहां राष्ट्रीय स्तर के तमाम इंस्टीटयूट इसके साथ व्यापक पहचान जोड़ते हैं। सैन्य अकादमी युवाओं जोश भरने का काम करती है। एफआरआई विश्व स्तर का इंस्टीटयूट है।
कभी देहरादून को अच्छी आबोहवा के लिए भी जाना जाता था। अब आबोहवा वैसी नहीं रही। इसके बहुत से कारण हैं। सबसे बड़ा कारण हुक्मरान इस शहर को वैसे सुरक्षा देने में नाकाम रहे जैसी इसकी आबोहवा को संरक्षित करने के लिए जरूरी थी। गत दिनों ओएनजीसी चौक पर हुए सड़क हादसे में छह युवाओं की जान चली गई। इस हादसे ने दीवारों पर चस्पा सुंदर देहरादून और साक्षर देहरादून पर सवाल उठा दिए हैं।
देहरादून अब वैसा नहीं रहा जैसे पहले था। राज्य गठन के बाद देहरादून ने जैसे रंग बदले या राजनीति के चलते रंग बदला गया वो आबोहवा और स्कूली शिक्षा के लिए पहचान रखने वाले देहरादून से दूर-दूर मेल नहीं खाते।
बहराहल, रात की दो बजे 20/22 साल के छह/सात युवक/युवतियों के घर से बाहर रहना और सड़क हादसे का शिकार होना सवाल खड़े करता है। अपने बच्चों को देहरादून पढ़ने भेजने वाला हर अभिभावक सन्न और निशब्द हो चुका है। कुछ भी कहने और समझाने की स्थिति में नहीं है। अब जिन अविभावकों के बच्चे उनसे अलग किसी अन्य शहर में पढ़ लिख रहे होंगे उनका खुद के बच्चों पर विश्वास नहीं बन पा रहा है या अब बच्चों को दिन में 2/3 बार बात भी कर लेंगे तब भी वे चिंतित रहेंगे! जिसने भी उस घटना का दुखद वीडियो देखा वो हे राम, कहते हुए कुछ नहीं कह पा रहे हैं।
इस दुर्घटना को कुछ ही दिनों में भूल या भुला दिया जायेगा, पर जिन घरों के चिराग बुझे हैं उनकी क्या स्थिति होगी यह शब्दों में बयां नहीं होगी। आजकल की नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि आज का छात्र, कल का भविष्य! जीवन में अनुशासन होना कितना जरूरी होता है यह एक उम्र के बाद ही पता चलता है पर जब उस उम्र तक ही नहीं पहुंच पाओगे तो क्या होगा।
अपने से बड़ों को सम्मान न देना, हवा में गाड़ी चलाना, नशे में देर रात्रि सड़कों पर फर्राटा बाइक या कार लेकर चलना आदि से आपके उच्च भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न होने का प्रदर्शन तो हो सकती है पर यह परवरिश को भी प्रदर्शित करता है।
नशा, तेज रफ्तार और हादसा इसके अलावा कुछ नहीं होता कभी खुद हादसे के शिकार हो जाते हो तो कभी किसी बेगुनाह को… जिंदगी को सोशल मीडिया की रील न समझे। जीवन सोशल मीडिया के लाइक और कमेंट तक ही सीमित रखे।
आज की पीढ़ी सोशल मीडिया को ही जिंदगी समझने लग गई है। इन्हीं कारणों से अब दुनिया के कही शिक्षित देशों में बच्चों का सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने मांग बढ़ती जा रही है। आज की पीढ़ी के लिए कहीं न कही उनके अभिभावक भी उतने ही जिम्मेदार है जितने वे स्वयं।
बच्चों से दूरी बनाकर, कम बोलचाल, भरपूर भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न कर अविभावक बच्चों को नरक में झोंक रहे हैं। अविभावको का अपनी बच्चों से ज्यादा दूरी होना भी गलत है। यदि आप किसी सम्पन्न देश की जानकारी लें तो पाएंगे कि यदि आपके बच्चे का वजन यदि उनके सामान्य वजन से ज्यादा हो जाए तो इसका दंड उसी अविभावक से ही लिया जाता है। आज युवा अपराध के एक कारण यह भी है कि अविभावकों की बच्चों से दूरी होना।
यह भी सत्य है कि आज भी अनेक दोपहिया वाहनों को 18 साल से कम उम्र के बच्चे दौड़ा रहे हैं। बिना लाइसेंस, बिना हेलमेट, बिना इंश्योरेंस! कुछ ऐसा ही चौपहिया वाहनों की भी है। और यह वाहन दिए भी अविभावकों ने ही हैं। आज के समय बिना वाहन चलाए कोई काम संभव भी नहीं है। पर उनको नियम और कायदे के अन्दर ही रहकर।
बात करें देहरादून की तो हाल के दिनों में होने वाली घटनाएं बहुत चिंतित करने वाली हैं। हर रोज जब सुबह अखबार खोला जाता है तो अनेक दुखद और वीभत्स घटनाएं पढ़ने को मिलती हैं, यदि सोशल मीडिया खोलें तो अनेक आपराधिक वीडियो! जब उन वारदातों में 18/20/22 के युवा शामिल हों या उनके साथ यह घटना हो तो यह सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती।
युवा सोचें अपने माता-पिता के बारे में, समाज के बारे में। उनसे क्या अपेक्षा है और वो क्या कर रहे हैं।