ऐली बेटा रे मेरा देहादूण

ऐली बेटा रे मेरा देहादूण
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कैलाश थपलियाल

नौ नवंबर को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस था ,मैंने सपने भी नहीं सोचा था कि आज के दिन मैं नकली राजधानी देहरादून में जहाँ हमारे राज्य के पलायित नेता और अमीर पहाड़ी भै-बन्ध रहते है ,में रहूँगा, लेकिन मेरी चाची जी की गॉंव में तबियत ख़राब होने के कारण मुझे नकली राजधानी में मन- मार के रहना पड़ रहा था।

देहरादून प्रवास के दौरान जब अपने पलायित हुए भाई के साथ सिटी बस में बैठकर सी0 एम्0आई0 हॉस्पिटल आ रहा था तो बीच में बस रुक गयी ,बस में भीड़ होने के कारण आगे कुछ नहीं दिख रहा था मैं यह नहीं देख पाया कि बस क्यों रुकी है जब ज्यादा देर तक बस रुकी रही तो मैंने अपने भाई से बोला कि कहीं कोई पत्थर तो नहीं आ गया सड़क पर , उसे चलो हटा देते है।

भाई बोला अरे भाई क्या बात करते हो रेलवे क्रासिंग है ,रेल आ रही है तब फाटक बन्द है ! मैं ठहरा ठेड़ पहाड़ी ,मैंने तो सोचा कि जब रोज स्कूल जाते समय मेरे पहाड़ में गाड़ी रुक जाती है ,तो हम तुरन्त उतरकर सड़क में आये पत्थरों को हटा देते है और गाड़ी आगे बढ़ जाती है ना किसी पी0 डब्लू0 डी0 विभाग का इन्तजार करते है हम पहाड़ी,हम तो बस लग जाते है बिना स्वार्थ की सेवा में ।

उसके बाद गाड़ी से उतरकर भाई ने आव न देखा ताव और मेरे से झल्लाकर कहा क्या भाई तुम भी घरया लोग ,गाड़ी क्यों रुकी है पता नहीं और भरी गाड़ी में मेरी बेज्जती कराते हो ! आखिर मैं भी कहाँ चुप रहने वाला मैंने कहा भुल्ला , भूल गया वो दिन जब आज से 10 साल पहले तू भी गॉंव में था ,गोर चराता था मेरे साथ थपलुखेत के पुंगडो में ,आज तू यहाँ चाहे सिगरेट के कस मारकर अपनी बड़ी आदमियत झाड़ रहा है यहाँ आने से पहले तो तू गमलू बोड़ा , गिताडू काका की बीड़ी के ठुड्डे को टीपकर चुपचाप गोर चराते समय बुज्जे के नीचे बैठकर सोड मारता था ।

मेरी अंतरात्मा से एक आवाज कह रही थी कैलाश तू चिल्ला-चिल्लाकर कह ले पहाड़, पहाड़ ! लोगो से कह ले तू की अपनी जड़ो को ढूंढ लो पहाड़ में, 50 बार जाले तू पलायन पर चिंतन की बैठक में ,कुछ नहीं होगा ,चाहे तू घिस ले अपने खुट्टो का ग्रीस पहाड़ों पर चढ़ते-चढ़ते आखिर में जब बीमार होगा तू तो आयेगा इलाज के लिए इसी देहरादून ।

दूसरी तरफ से एक आवाज आती है नहीं कैलाश तू तो जन्मा हुवा है इसी पहाड़ के लिए, ये देहरादून वाले ,चाहे वो वहाँ पर बसने वाला आम पहाड़ी हो या हमारे ये चकड़ेत नेतागण सभी मौज करके खा रहे है इस पहाड़ के नाम पर बने उत्तराखंड राज्य का , क्या करे भुल्ला कैलू दिल को खुश रखने ग़ालिब यह खयाल अच्छा है ! क्या करे विस्मित भी हूँ कि मेरे इस पहाड़ी राज्य को 25वां साल आज लग रहा है फिर भी अब तक यह अपने पैरो पर खड़ा नहीं हो पा रहा है , मेरे पहाड़ियों अगर तुम ऐसे ही सोये रहे और पहाड़ में विकास नहीं हुवा ,राजधानी पहाड़ी क्षेत्र गैरसैंण नहीं बनी तो समझ लेना इन चकड़ेतो की फौजो , रोड़ी बजरी के माफियाओं और देहरादून कोटद्वार व् अन्य मैदानी इलाको में बिस्वा,बीघा लेकर थोकदार बने ये स्वार्थी आम पहाड़ी इस उत्तराखंड को जिंदगी भर के लिए वैशाखी के सहारे खड़े रहने को मजबूर कर देंगे ।

Tirth Chetna

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