सशक्त भू-कानून पर बहस मुबाहिस और अतिक्रमण पर चुप्पी

सशक्त भू-कानून पर बहस मुबाहिस और अतिक्रमण पर चुप्पी
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तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। सशक्त भू-कानून पर इन दिनों शासन के निर्देशों के क्रम में जिला स्तर पर चल रही बहस मुबाहिस के बीच अतिक्रमण के मामले में सिस्टम ने चुप्पी साध ली है। इससे राज्य का तीर्थाटन और पर्यटन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

नौ नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड राज्य को पहले दिन से ही सशस्त भू-कानून की दरकार थी। मगर, अंतरिम सरकार ने इस पर गौर नहीं किया। तब सरकार की प्राथमिकता कार्यालयों के लिए महंगे पर्दे, अच्छी कुर्सी-मेज की खरीद थी। इन कार्यों की तब खूब चर्चा भी हुई।

पहली और दूसरी निर्वाचित सरकारों ने भू-कानून पर कुछ गौर किया। मगर, आगे इसे और बेहतर नहीं बनाया जा सका। 2017-20 के बीच अस्तित्व में रहे भू-कानून को कुछ तोड़ा मरोड़ा गया और जमीनों की लूट का गेट खुल गया। पहाड़ के डांडा-कांठा, गाड़-गधेरों के आस-पास की पुंगड़ियों की खरीद फरोख्त शुरू हो गई।

अब इस मामले में राज्य के आम लोग चेते और हो हल्ला हुआ तो राज्य सरकार ने सशक्त भू-कानून बनाने की बात करनी शुरू कर दी। इस पर शासन स्तर पर काम भी चल रहा है। ये अच्छी बात है। शासन के निर्देशों पर जिला स्तर पर भी लोगों से भू-कानून को लेकर बहस मुबाहिस चल रही हैं।

तहसील स्तर पर अधिकारी इस संबंध में लोगों से सुझाव मांग रहे हैं। लोगों के सुझाव सरकार की कसौटी पर कितने खरे उतरेंगे देखने वाली बात होगी। सरकार कैसा भू-कानून बनाना चाहती है ये भी बात में ही पता चल सकेगा।

इस बीच, भू-कानून पर लोगों के सुझाव ले रहे अधिकारी संबंधित क्षेत्रों में सरकारी जमीनों पर हुए अतिक्रमण/कब्जोें पर चुप्पी साधे हुए हैं। अतिक्रमण/कब्जों से राज्य का तीर्थाटन और पर्यटन दोनों प्रभावित हो रहे हैं। चारधाम यात्रा मंे हरिद्वार-ऋषिकेश से लेकर चारों धामों तक ये नजारा देखा और महसूस किया जा सकता है। राजधानी देहरादून अतिक्रमण से कराह रहा है।

अतिक्रमण/कब्जों पर सिस्टम की चुप्पी का ही परिणाम है कि हरिद्वार-ऋषिकेश की धर्मशालाएं गायब होने लगी हैं। हाइवे से लेकर सार्वजनिक स्थल मारे अतिक्रमण के सिमट रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन इस पर गौर करने को तैयार नहीं है।

अतिक्रमण पर लहलहा रही वोट की फसल ने जनप्रतिनिधियों के मुंह पर ताला जड़ दिया है। अतिक्रमित क्षेत्र सरकार की योजनाओं से अधिक उपकृत किए जा रहे हैं।

हालात स्थानीय निकायों के बूते से बाहर हो गए हैं। बड़ी सरकारें गौर करने को तैयार नहीं है। इससे राज्य का तीर्थाटन और पर्यटन प्रभावित हो रहा है। चारधाम यात्रा और सामान्य दिनों में भी ऐसा देखा और महसूस किया जा सकता है।
राज्य को सशक्त भू-कानून की जरूरत है। साथ ही सरकारी जमीनों को अतिक्रमण मुक्त कराने की भी जरूरत है।

Tirth Chetna

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