स्कूली शिक्षा में सुधार को बड़े और कड़े कदम उठाने की जरूरत

ऋषिकेश। राज्य की स्कूली शिक्षा (सरकारी स्कूल) में सुधार को बड़े और कड़े कदम उठाने की जरूरत है। इसमें शिक्षकों की नियुक्ति स्रोत, प्रमोशन की पेचदगियों को दूर करने और स्कूलों में विभागीय अधिकारियों के दखल को सीमित करना प्रमुख रूप से शामिल है।
बाजारी शिक्षा में स्कूल का बॉस सिर्फ प्रिंसिपल होता है। अच्छी पढ़ाई, अनुशासन और स्कूल/छात्र के प्रोजेक्शन के लिए वो शत प्रतिशत जिम्मेदार होता है। प्रिंसिपल अच्छे रिजल्ट के लिए शिक्षकों को प्रेरित करता है। परिणाम सबके सामने है।
सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल पद भर होता है। स्कूलों में कई स्तर के अधिकारियों का दखल होता है। कम्यूनिटी को जोड़ने की पहल अब लोकल पॉलिटिक्स के रूप में सामने आ रही है। सरकार की तमाम योजनाओं ने स्कूलों में बेचारगी का खोल चढ़ा दिया है।
इन सब वजहों से बेहद योग्य शिक्षकों के बावजूद सरकारी स्कूल समाज की प्राथमिकता में नहीं हैं। ऐसे में जरूरी है कि स्कूली शिक्षा में सुधार को बड़े और कड़े कदम उठाए जाएं। इसकी शुरूआत शिक्षकों की नियुक्ति स्रोत, प्रमोशन की पेचदगियों को दूर करने और स्कूलों में विभागीय अधिकारियों के दखल को सीमित करने से की जा सकती है।
प्रिंसिपलों को अधिकार संपन्न बनाकर सरकारी शिक्षा बाजारी शिक्षा को टक्कर देने लेगेगी। नए शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत बेहतरी के लिए कदम उठाने की बात कर भी रहे हैं। हांलाकि विभागीय ढांचे से इसकी शुरूआत बेहतरी की मंशा को उलझा सकते हैं। अभी तक की सरकारें ढांचे के मामले को साध नहीं सकी हैं।
सुधार की शुरूआत स्कूल, शिक्षक, प्रिंसिपल, नियुक्ति और प्रमोशन से हो। प्रिंसिपल के पद को सीधी भर्ती बनाम प्रमोशन में न उलझाया जाए। शिक्षकों को समय से प्रमोशन मिलेंगे तो स्कूलों में प्रिंसिपल का पद रिक्त नहीं रहेगा।