ऋषिकेश। उत्तराखंड राज्य में 21 सालों में मजबूत नेतृत्व नहीं उभर सका। राज्य में नेताओं को बड़े-बड़े पद जरूर मिले। मगर, उनका दायरा सीमित ही रहा। इसका खामियाजा राज्य कई तरह से भुगत रहा है।
उत्तराखंड के लोगों ने क्षेत्रीयता को नहीं उभरने दिया और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने यहां मजबूत नेतृत्व को नहीं पनपने दिया। लोगों से लगातार चूक हो रही है और राजनीतिक दलों के बड़े मकसद इस छोटे राज्य में खूब पूरे हो रहे हैं।
इसका खामियाजा राज्य कई तरह से भुगत रहा है। राज्य के सवाल हाशिए पर चले गए हैं। कभी कभार उन्हें खास गरज के लिए रिफ्रेश किया जाता है। राज्य के बड़े-बड़े चेहरे उत्तराखंड के असली मुददों के बजाए दिल्ली में फैब्रिकेट मुददों की ही राजनीति कर रहे हैं।
विधायकी/सांसदी और मंत्री बनने की अंधी दौड़ में राज्य के नेता उत्तराखंड राज्य निर्माण के असली उददेश्यों को भी याद करने को तैयार नहीं दिखते। बड़े पद पाने के बाद भी नेता स्वयं का एक दायरे तक ही समिति रख रहे हैं।
राज्य निर्माण के बाद आई तमाम सरकारों पर गौर किया जाए तो मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों तक ही सीमित रहे। बड़ी योजनाओं के लिए नेताओं को वो ही क्षेत्र दिखते हैं जहां से वो चुनाव लड़ते हैं। यही नहीं जिन क्षेत्रों की मजबूती पैरवी नहीं होती वहां के प्रोजेक्ट झपटने में भी पद पर आसीन नेता हिचकिचाते नहीं है।
ऐसे तमाम मामले आए दिन राज्य में चर्चा में आते रहे हैं। इस तरह से नेता 13 जिलों के राज्य में खास क्षेत्र से आगे की नहीं सोच रहे है। यही वजह है कि 21 सालों में राज्य में कोई मजबूत नेतृत्व नहीं उभर पाया। ऐसा कोई नेता नहीं हुआ जिसका असर पूरे राज्य में दिखे।