जनप्रतिनिधि के बजाए दल चुनने की सजा भुगत रहे उत्तराखंड के लोग
देहरादून। उत्तराखंड के लोग राज्य के हितों के संरक्षण और अपने हितों की वकालत के लिए जनप्रतिनिधि चुनना भूल गए हैं। इसके स्थान पर लोग दल का चुनाव कर रहे हैं। परिणाम सबके सामने है।
इन दिनों उत्तराखंड में नौकरी घोटाले की चर्चा है। पहले भी होती रही हैं। राजनीतिक दल ऐसी चर्चाओं को परंपरागत तरीकों से शांत कराते रहे हैं। परिणाम नौकरियों के घोटाले करने वाले साफ बच निकल जाते हैं। राज्य के लोगों के यही अनुभव उन्हें एसटीएफ पर भरोसा करने से रोक रहे हैं।
राज्य के योग्य युवाओं को दरकिनार कर नाते-रिश्तेदार, जान-पहचान, मंत्री-विधायकों के अग्गू भग्गू को ठसक के साथ बांटी जाने वाली नौकरियों का कारण उत्तराखंड का जनमानस ही है। दरअसल, उत्तराखंड के लोगों ने राज्य गठन के बाद अपने लिए जनप्रतिनिधि नहीं चुने।
उत्तराखंड में लोग अच्छा जनप्रतिनिधि चुनने के बजाए राजनीतिक दलों को चुन रहे हैं। राजनीतिक दलों को भी किस आधार पर चुना जा रहा है ये बताने की जरूरत नहीं है। उत्तराखंड के साथ यहीं से परेशानी शुरू हो रही है। कारण जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले जनता के बजाए दल का हो जाता है।
दल की आड़ में ही राज्य के योग्य युवाओं के हिस्से की नौकरियां बेची जा रही हैं। ठसक ऐसी कि बता भी देते हैं कि हां, अपने लोग लगाए हैं। ये दुस्साहस भी राजनीतिक दलों से ही मिलता है कि बांटी गई सरकारी नौकरियों को नियमानुसार बता दिया जाता है।