उत्तराखंड में पक रही राजनीतिक खिचड़ी
दिग्गजों के मूवमेंट से कई राजनीतिक दलों के कान खड़े
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। उत्तराखंड में एक बार फिर से राजनीतिक खिचड़ी पकती महसूस हो रही है। खिचड़ी पकाने में एक्सपर्ट नेताओं के हाल के मूवमेंट ने कई राजनीतिक दलों के कान खड़े करवा दिए हैं। धीरे धीरे बोल कोई सुनना ले की तर्ज पर नेताओं ने अपने कान एक्टिव मोड में डाल दिए हैं।
उत्तराखंड का राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान राजनीतिक खिचड़ी प्रूफ है। यानि इस पर किसी भी प्रकार की राजनीतिक खिचड़ी या राजनीतिक के नवरत्न कोरमा का भी कोई असर पड़ने वाला नहीं है। बावजूद इसके राजनीति खिचड़ी पकने की चर्चा जोरों पर है। चर्चा ही नहीं महसूस भी हो रहा है।
ऐसे में खिचड़ी का असर कहां पड़ेगा बताने की जरूरत नहीं है। राजनीति के नए चलन में अब राजनीतिक खिचड़ी सत्ता प्रतिष्ठान को हिलाने के लिए ही नहीं पकती बल्कि विपक्ष के कसबलों का ढीले करने के लिए भी पकती है। यही वजह है कि सत्ता से बहुत दूर वाले राजनीतिक दल अब ज्यादा असुरक्षित हो गए हैं।
ऐसे ही मिजाज की राजनीतिक खिचड़ी पकने की बात उत्तराखंड की राजनीति में हो रही है। खिचड़ी पकाने और रायता फैलाने के एक्सपर्ट नेताओं के मूवमेंट ने कई राजनीतिक दलों के कान खड़े कर दिए हैं। दिन के उजाले में बैठक और पौ फटने से पहले मेल मुलाकात से काफी कुछ स्पष्ट भी हो रहा है।
धीरे-धीरे बोल कोई सुनना ले की तर्ज पर जाने वाले अब इसी तर्ज पर वापसी की राह बनाने की कोशिश में हैं। बताने के लिए कुछ दिग्गजों से मीटिंग हो रही हैं। भविष्य का वास्ता देकर दो-चार को साथ चलने का ऑफर भी दिया जा रहा है। कुछ ललचा भी रहे हैं।
सत्ता प्रतिष्ठान ने तीन कुर्सियों यूं ही खाली नहीं छोड़ी हैं। कुर्सियों ललचा भी रही हैं और भरोसा पैदा भी कर रही हैं। फिर कुर्सी भोगकर लौटने का विकल्प तो हे हैं। पहले भी तो लौटे हैं।