ये विशुद्ध रूप से राजनीतिक ठगी है

देहरादून। काम के बजाए कैडर और चेहरे के दम पर नेताओं का चुनाव जीतना समाज के साथ राजनीतिक ठगी है। उत्तराखंड इस ठगी से राज्य गठन के बाद से ही दो चार हो रहा है। इस बात को अब लोग समझने लगे हैं।
भारतीय लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की महत्ता है। राजनीतिक दल अपने विचार और कार्यक्रमों को कैडर के माध्यम से आगे बढ़ाते हैं। मगर, अब भारतीय राजनीति में कैडर और चेहरे के नाम पर समाज के साथ राजनीतिक ठगी होने लगी है।
राजनीतिक दल कैडर और चेहरे के नाम पर ऐसे नेताओं को भी आगे बढ़ा रहे हैं जिनका समाज के बीच कुछ काम ही नहीं है। जानने के बावजूद ऐसे नेताओं को राजनीतिक दलों द्वारा आगे बढ़ाया जाना एक तरह से समाज का मुंह चिढ़ाना है।
यही नहीं कुछ ऐसे नेता विधायक/सांसद बनकर भी जनता के प्रति कटिबद्ध नहीं हैं। वो जनता के बजाए पार्टी के विधायक/सांसद बनकर रहते हैं। जनहित के तमाम मामलों में विधायक/सांसद पार्टी की लाइन पर ही रहते हैं। जबकि उन्हें जनता ने अपनी आवाज बनने के लिए चुना है।
हैरानगी की बात ये है कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता स्वीकारते हैं कि विधायक/सांसद ने काम नहीं किया। दावा भी करते हैं जीतने के बाद भी नहीं करेगा। फिर भी ऐसे नेताओं के लिए वोट मांगे जाते रहे हैं। ये कैडर की भावनाओं के साथ तो खिलवाड़ है। साथ ही समाज के साथ ये राजनीतिक ठगी है।
जनता इसे महसूस भी करने लगे है। जनता आवाज भी उठा रही है। मगर, कैडर की दीवार के सामने कुछ नहीं सुनाई देता। हां, देश के कई राज्यों ही नहीं केंद्र में भी कैडर दरके हैं। इसकी वजह भी यही रहा है कि संबंधित राजनीतिक दलों ने ऐसे नेताओं को जनता के माध्यम से आगे बढ़ाया जो जनता के प्रति चुनाव जीतने के बाद प्रतिबद्ध नहीं रहे।