निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव की खबर में दबा दी जाती है शिक्षक/कार्मिकों की आपबीती

निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव की खबर में दबा दी जाती है शिक्षक/कार्मिकों की आपबीती
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अविनाश चंद्र ।
पौड़ी। विधानसभा/लोकसभा/ त्रिस्तरीय पंचायत/निकाय चुनाव का मतदान समाप्त होते ही मीडिया में आलाधिकारियों के हवाले से एक खबर जरूर होती है। हेडिंग होता है चाक चौबंद व्यवस्था के बीच चुनाव निष्पक्ष और शांतिपूर्ण संपन्न। चुनाव को निष्पक्ष, स्वच्छ और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने वाले शिक्षक/कर्मियों को होने वाली दिक्कतों का कहीं जिक्र नहीं होता।

हिन्दी न्यूज पोर्टल www.tirthchetna.com ने मतदान से करीब एक माह पूर्व से एक्सरसाइज में शामिल शिक्षक/कर्मियों को टटोला। उनके मुंह से सुना और महसूस किया कि कैसे एक दिन चुनाव प्रशिक्षण और दूसरे दिन स्कूल/कार्यालय में डयूटी बजाते हैं। सुदूर क्षेत्रों से कैसे प्रशिक्षण के लिए जिला मुख्यालय पर पहुंचते हैं। अधिकारी निर्वाचन की गंभीरता का बखान करते-करते इसमें चूक पर सजा की बात बार-बार सुनाकर एक तरह से कार्मिकों को हतोत्साहित करते हैं।

प्रस्तुत है एक शिक्षक की चुनाव डयूटी और आपबीती। विधानसभा चुनाव 2022 विद्यालय में सभी साथियों की ड्यूटी आ गई थी । मेरी नहीं आई । ऐसा कैसे हुआ ? मैंने अपने विद्यालय के बाबू से कई बार संपर्क किया । उन्होंने कहा कि सर इस बार आपकी ड्यूटी नहीं है।

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । ऐसा चमत्कार कैसे हुआ । नियुक्ति के तीन महीने के भीतर से ही मैं चुनाव डयूटी करता रहा हूं । इस बार बचा कैसे ? फिर सोचा कि शायद पिछले जन्म का कोई पुण्य रहा होगा कि मैं इस ड्यूटी से बच गया । ईश्वर को धन्यवाद दिया। इसी खुशी में मैंने पत्नी से पकौड़े बनाने के लिए कहा ।

पत्नी ने भी बड़ी प्रसन्नता से पनीर , आलू , गोभी , प्याज इन सभी चीजों के पकौड़े बनाये । मैं पकौड़े का आनंद ले ही रहा था कि तभी फोन की घंटी बजी । खंड शिक्षा कार्यालय के बाबू का फोन था । उसने कहा कि आप की इलेक्शन ड्यूटी लगी है और आज ही आपका प्रशिक्षण है।

आप जाकर प्रशिक्षण लीजिए। सारी खुशी पल भर में छू हो गई। मैंने कहा कि यदि प्रशिक्षण है तो कम से कम एक दिन पहले मुझे बताते । अब दिन के 12 बज रहे हैं और आप मुझे अब बता रहे हैं । अबतक तो आधा प्रशिक्षण समाप्त भी हो चुका होगा । बाबू ने कहा कि मुझे आपको बताना था , मुझे आपको बताना था और मैंने आपको बता दिया।

मैंने भी गुस्से भी बोल दिया जाइए मैं आपकी ड्यूटी रिसीव नहीं करता । पकौड़ों का स्वाद कसैला हो चुका था और मन खराब । इधर जिला मुख्यालय पौड़ी में प्रशिक्षण शुरू था तथा मेरा नाम अनुपस्थित कर्मिक के रूप में प्रशिक्षण हाल में अनाउंस किया जा रहा था ।

अब मन पूरी तरह डिस्टर्ब हो चुका था । तभी मेरे विद्यालय के प्रधानाचार्य जी का फोन आया । उन्होंने कहा कि आज आपका प्रशिक्षण है । मैंने कहा कि सर अगर एक दिन पहले भी मुझे अवगत करा दिया जाता तो मैं प्रशिक्षण में शामिल हो जाता । अब बताइए कि कब मैं घर से निकलूंगा और कब 110 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके प्रशिक्षण स्थल पर पहुॅंचुंगा। मेरे प्रधानाचार्य जी एक सुलझे हुए शांत और सज्जन व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें । हम पता करते हैं ।

शाम को प्रधानाचार्य जी का फोन आया कि उन्होंने पता किया है । मेरा प्रशिक्षण कल हो जाएगा । कोई चिंता की बात नहीं है । अगले दिन प्रधानाचार्य जी भी प्रशिक्षण हेतु जा रहे थे । मैं भी उनके साथ प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण हेतु जिला मुख्यालय पौड़ी के लिए चल पड़ा । एक दो साथी और भी साथ में थे । बातचीत में रास्ता कट गया । अच्छे और विद्वान लोग साथ में हों तो , सफर आनंददायक हो जाता है ।

प्रशिक्षण के बाद मैं जब एन आई सी में हस्ताक्षर के लिए गया तो वहॉं नवागत मुख्य शिक्षा अधिकारी महोदय से भेंट हो गई । उन्होंने प्रशिक्षण पूरा करने पर बधाई दी । मैंने भी उनसे कहा कि सर आगे से ड्यूटी समय पर भेजने की कृपा कीजिएगा । पुनः प्रशिक्षण प्राप्त करके हम वापस आ गए ।

अब मैंने चुनाव ड्यूटी के लिए स्वयं के लिए तैयार कर लिया था । जल्द ही दूसरा प्रशिक्षण भी हुआ और विधानसभा सभा भी मिल गई । फिर हमें आर ओ के यहां बुलाया गया और एक सिग्नेचर कराकर छोड़ दिया गया। दूर दूरस्थ स्थानों से आकर कर्मचारी कोटद्वार में होटल , धर्मशाला लेकर पड़े थे । वे अच्छे खासे बेवकूफ बने। सिर्फ एक हस्ताक्षर के लिए एक दिन पूर्व बुलाकर उन्हें तंग किया गया ।

मेरे तृतीय मतदान अधिकारी एक वृद्ध चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे । मैंने देखा कि अच्छे खासे नौजवान लोगों की ड्यूटी कट जाती है और बूढ़े , बीमार और सेवानिवृत्ति के कगार पर खड़े लोगों की ड्यूटी लगी हुई है । अब यह चमत्कार कैसे हो जाता है भगवान ही जानें । इसी बीच यह घटना हुई कि दूसरे मतदान अधिकारी की बेटी बीमार हो गई और वे ड्यूटी कटाने के लिए घूम रहे थे ।

अब मैंने और प्रथम मतदान अधिकारी ने किसी किसी तरह सामान आदि लेकर उसे मिलाया । तबतक द्वितीय मतदान अधिकारी ड्यूटी कटाने के लिए दो बार जा चुके थे पर आर ओ ने ड्यूटी काटने से मना कर दिया । वे डिस्टर्ब होकर इधर उधर घूम रहे थे । फिर हमलोग अपने निर्धारित बस की ओर चल पड़े । सामान बस में चढ़ा दिया।

तबतक द्वितीय मतदान अधिकारी आये और बताया कि उनकी ड्यूटी कट गई है । फिर हमें रिजर्व ड्यूटी से द्वितीय मतदान अधिकारी उपलब्ध कराया गया और हम अपने पोलिंग स्टेशन की ओर प्रस्थान कर गए। हमारे विद्यालय में चार पोलिंग बूथ और केंद्रीय पुलिस बल को मिलाकर कुल 36 सदस्य थे । पता चला कि इतनी बड़ी बटालियन के लिए प्रशासन ने एक भोजनमाता की व्यवस्था कर रखी है ।

दिन के तीन बज रहे थे । जब हम पहुंचे तो भोजन माता ने मात्र छः लोगों के लिए भोजन बना रखा था । अब चार बज चुके थे । मैंने भोजनमाता से सीधे रात का भोजन बनाने तथा उस समय चाय बनाने का आग्रह किया और चुनाव की तैयारी प्रारंभ कर दी।

रात के दस बज चुके थे । भोजन का कहीं अता-पता नहीं था । फिर बार बार फोन लगाने पर जैसे तैसे भोजन आया। बस रोटी और चने की सब्जी। उस सब्जी में न नमक न मिर्च और न ही ढंग के मसाले । जब भूख लगी हो तो इंसान मिट्टी भी कोड़कर खाता है । हमलोग वही सब्जी और रोटी जल्दी जल्दी चबा गये ।

भोजन इतना कम आया था कि दो होमगार्डों के लिए भोजन कम पड़ गया। दोनों सिपाही भूख से परेशान थे । खैर बार बार फोन लगाने के बाद भोजनमाता के घर से एक लड़का किसी तरह कुछ रोटियां और सब्जी लेकर आया । अब जाकर दोनों होमगार्डों को भोजन नसीब हुआ। अगले दिन हम चार बजे उठ गये । बाहर धुप्प अंधेरा था । भयंकर ठंड थी । हम टार्च आदि जलाकर जैसे तैसे नित्य क्रिया में लग गए। फिर इलेक्शन की तैयारी शुरू कर दी ।

सारा सामान सेट कर दिया । एजेंट बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी । समय पर एजेंटों के सामने पूरा मॉक पोल किया । वीवीपैट से अवगत कराया । मॉक पोल में पर्याप्त समय लग रहा था । एजेंट भी यह सारी प्रक्रियाएं देखकर एजेंट अचंभित थे । उन्होंने कहा कि सचमुच मतदान कराना बड़ी जटिल क्रिया है । वीवीपैट में वे अच्छी खासी रुचि ले रहे थे । यह देखकर वे काफी खुश थे कि मशीन की बैलेट यूनिट में वे जिस बटन को दबा रहे हैं वी वी पैट में उसी उम्मीदवार की पर्ची गिर रही है ।

ठीक आठ बजे से मतदान प्रारंभ करा दिया । सभी अपने-अपने कार्य में लग गए । तबतक किसी तरह एक कप चाय नसीब हुई । तृतीय मतदान अधिकारी वृद्ध आदमी थे तथा बैलेट बटन देने में उन्होंने असमर्थता व्यक्त की । अतः उनको द्वितीय मतदान अधिकारी के पास स्याही लगाने के लिए बैठा दिया । अब मेरे ऊपर दोहरा भार आ गया था । एक तरफ मशीन का बैलेट बटन दबाने का काम तथा दूसरी ओर समय समय पर प्रपत्रों को भरने का काम ।

इसके अतिरिक्त दो दो घंटे में मतदान रिपोर्ट , कितने मतदाता हैं , कितने पुरुष कितनी महिला , कितना मतदान हुआ , उसका प्रतिशत क्या रहा , फिर पी डी एम एस नंबर पर इसे सेंड करना । कंट्रोल रूम से भी बार बार फोन आ रहे थे । बार बार सेक्टर तथा ज़ोनल मजिस्ट्रेट का भी दौरा हो रहा था । मैं एजेंटों से प्रपत्रों में हस्ताक्षर करवा रहा था ।

फार्म 17ब ; घोषणा पत्र , मतदान अभिकर्ता की संचलन सीट , पीठासीन अधिकारी के सार आदि विभिन्न प्रपत्रों पर एजेंट साइन करने में लगे हुए थे । इसी बीच एक दल के प्रत्याशी और प्रख्यात नेता , और पूर्व मंत्री का भी आगमन हुआ । भारत निर्वाचन आयोग का सम्मान करते हुए कोई भी मतदान कर्मिक न तो उनके लिए खड़ा हुआ और न ही अभिवादन आदि किया । वे भी चुपचाप अपने एजेंट से जानकारी लेकर चले गए । एक पूर्व मुख्यमंत्री भी आए लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मतदान केन्द्र में प्रवेश ही नहीं करने दिया ।

वे बाहर से हाथ हिलाते हुए चले गए । चुनाव बिल्कुल निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था । पोलिंग एजेंट प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करते करते थक चुके थे । उनके मोबाइल सुबह ही बाहर रखवा दिए गए थे । वे बार बार अपनी घड़ी देख रहे थे कि कब छः बजे और मतदान खत्म हो। वे कह भी रहे थे कि मतदान में बहुत काम होता है । इन सबमें तीन बज चुके थे पर भोजन का कहीं अता-पता नहीं था ।

हम एक कप चाय पीकर इस प्रक्रिया को निपटाने में लगे हुए थे । अंत में जब भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो मैंने सेक्टर मजिस्ट्रेट को फोन किया । सेक्टर मजिस्ट्रेट को फोन करने के बाद किसी तरह भोजन आया । लकड़ी की तरह सूखी पूड़ियॉं और आलू की नाममात्र की नमक मिर्च मसाले वाली सब्ज़ी ।

हम भुखमरों की तरह उन पूड़ियों पर टूट पड़े । वहीं मतदान केन्द्र में भोजन भी करते रहे और मतदान प्रक्रिया को भी निर्बाध रूप से चलाते रहे मतदान कार्य चलता रहा । छः बजते ही ही हमने मतदान समाप्त किया और मशीन सील करके लिफाफों / प्रपत्रों को अंतिम रूप देना शुरू किया। सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद हम सामग्री जमा करने के लिए जिला मुख्यालय पौड़ी की ओर चल पड़े।

रात के अंधेरे में बस पर्वतीय सर्पिलाकार मार्ग पर कोटद्वार से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर पौड़ी शहर की ओर दौड़ पड़ी । कहॉं मैदानी शहर कोटद्वार और कहॉं पर्वतीय शहर पौड़ी । पौड़ी की ओर बढ़ते ही ठंड बढ़ने लगी । पौड़ी में ठंड से हाड़ कांप रहे थे । हम मशीन लेकर जमा करने वाले काउंटर की ओर बढ़ चले । आसपास भेड़ बकरियों की तरह लोग खड़े थे , इधर उधर आ जा रहे थे । भयंकर कुव्यवस्था थी । आप कितना भी बढ़िया काम करके ले जाएं मौके पर मौजूद बाबू उसे बराबर कर देते हैं। जिस बरामदे में काउंटर बने हुए थे उसके बाहर खुली छत थी। प्रशासन के भीतर इतनी भी संवेदना नहीं थी कि उसके ऊपर एक पाल भी लगवा दें । उससे पाला गिर रहा था ।

अचानक खड़े खड़े ठंड और पाले से मेरी तबियत बिगड़ने लगी । चक्कर आने लगा । कलेजे में धक धक होने लगी । बेचैनी घबराहट बढ़ने लगी । मैंने प्रथम मतदान अधिकारी से वहां खड़ा रहने के लिए कहकर एक जगह आकर सिर पकड़ कर बैठ गया । वहां पर न तो कोई किसी को पूछने जॉंचने वाला था और न ही चिकित्सा का कोई प्रबंध ।

तब तक द्वितीय मतदान अधिकारी आये और कहीं से खोजकर दो कप चाय ले आए । चाय की गर्माहट अंदर जाते ही कुछ आराम अनुभव हुआ । प्रथम मतदान अधिकारी सज्जन आदमी थे । उन्होंने मुझे उसी दीवाल के पास बैठे रहने के लिए कहकर स्वयं लाइन में लगे रहे ।

थोड़ी दूर पर कुछ पुलिसकर्मी आग जलाकर बैठे हुए थे । मैं भी उनके पास जाकर बैठ गया । आग की गर्मी लगते ही तबियत में आराम होने लगा । मैं उन्हीं के पास बैठ गया । काफी देर बाद जम हमारा नंबर आया तो सुबह के सात बज चुके थे । कार्यमुक्त होते-होते आठ बज गए ।

अपने मतदान अधिकारियों को कार्यमुक्त करने के बाद मैंने विदा किया और मन ही मन अव्यवस्थाओं को कोसने लगा। धूप निकल आई थी । एक जगह बैठकर थोड़ी देर धूप सेंकी । जब मन शांत हुआ तो सवा सौ किलोमीटर दूर स्थित कोटद्वार की ओर चल पड़ा ।

तब तक सूचना मिली कि कुछ शिक्षक साथी जो हमसे कुछ ही देर पहले सामान जमा करके घर लौट रहे थे झपकी आने के कारण उनकी गाड़ी खाई में गिर गई । उनमें से एक साथी दिवंगत हो गये । तीन गंभीर रूप से घायल हो गए ।

इनकी इस दुःखद मौत का जिम्मेदार कौन है ? मन दुःखी हो गया । लोग तो त्प्च्, दुःखद , ईश्वर इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे लिखकर एक किनारे हो जाएॅंगे लेकिन इनके बीवी बच्चों पर जो बीत रही होगी उसे भला कौन समझेगा।

हाय रे लोकतांत्रिक भारत की निष्ठुर नौकरशाही , तेरे कारण न जाने कितनों के घर असमय उजड़ जाते हैं । एक संवेदना हीन संवैधानिक आयोग की ड्यूटी जिसके क्रूर और बर्बर व्यवहार , तथा उत्पीड़न का मैं और मेरे जैसे न जाने कितने लोग शिकार होते हैं ।

एक ऐसा आयोग जहॉं पर मानवीय संवेदना के लिए कोई स्थान नहीं है , बल्कि बर्बर , निष्ठुर नौकरशाही और लालफीताशाही की क्रूरता दृष्टिगोचर हो रही है , यह एक संवैधानिक आयोग है । साथ ही याद आ गया हमारा संविधान । दुष्यंत याद आ गए : सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर, झोले में उसके पास कोई संविधान है।
                                                                                                   लेखक- हिन्दी के प्रवक्ता हैं।

Tirth Chetna

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