प्रमोशन के लिए शिक्षकों की परीक्षा कितनी जायज ?

ऋषिकेश। हर दिन स्कूल में सोशल ऑडिट फेस करने वाले सरकारी स्कूल के शिक्षकों की प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा कितनी जायज है। सरकार के एक निर्णय ने इसे बहस का मुददा बना दिया है।
जी हां, राज्य सरकार इंटर कालेजों में प्रिंसिपलों के रिक्त 50 प्रतिशत पदों को विभागीय परीक्षा के माध्यम से भरना चाहती है। बताया जा रहा है कि इसके लिए प्रवक्ता ही अर्ह होंगे। आयोग से चुने गए कार्मिक का विभाग में प्रमोशन के लिए परीक्षा का ये अपनी तरह का मामला होगा।
दरअसल, इंटर कालेज के प्रवक्ता राज्य लोक सेवा आयोग से ही चुने जाते हैं। एलटी शिक्षकों को भी प्रवक्ता पद पर विषयगत लाभ आयोग की मुहर के बाद ही मिलता है। यानि राज्य के गवर्नमेंट इंटर कॉलेजों में तैनात हर प्रवक्ता आयोग से चुना गया है।
किसी भी विभाग में आयोग से चुने गए कार्मिक की प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा नहीं होती। राज्य लोक सेवा आयोग से एसडीएम, डिप्टी एसपी और तमाम पदों पर चुने जाने वाले कार्मिक विभाग में वरिष्ठता और श्रेष्ठता के आधार पर प्रमोशन पाते हैं। हायर एजुकेशन और हेल्थ डिपार्टमेंट इसका अच्छा उदाहरण है।
यूपीएससी से चुने जाने वाले अखिल भारतीय स्तर के अधिकारियों के प्रमोशन भी इसी परंपरा के अनुसार होते हैं। इस व्यवस्था अच्छे से आत्मसात हो चुकी है। ऐसे में शिक्षकों के लिए प्रमोशन की नई व्यवस्था बनाने को लेकर राज्य के शिक्षकों के बीच बहस शुरू हो गई है।
बहस में ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या शिक्षा विभाग शिक्षकों की वरिष्ठता और श्रेष्ठता का सही से मूल्यांकन नहीं कर पा रहा है। क्या श्रेष्ठता के लिए निर्धारित मापदंडों में कोई खोट है। क्या इस प्रस्तावित व्यवस्था से नई तरह के विवाद तो पैदा नहीं होंगे।
इसको लेकर शिक्षक नेताओं के तर्क फिलहाल इस बात तक सीमित हैं कि सभी को मौका मिलना चाहिए। यानि सबको परीक्षा में बैठने का मौका मिल जाएगा तो सरकार का निर्णय सही हो जाएगा। सच बात ये है कि ये मामला सबको या किसी-किसी को मौका देने का नहीं है। ये एक ऐसी परंपरा बन जाएगी जिसमें शिक्षक का फोकस विभागीय अनुभव लेने के बजाए प्रमोशन के लिए परीक्षा पर फोकस हो जाएगा।