स्कूली शिक्षा के नाना मुददों के बीच फंसी राजकीय शिक्षक संघ की राजनीति

तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। उत्तराखंड में राजकीय शिक्षक संघ की राजनीति स्कूली शिक्षा (माध्यमिक) के नाना प्रकार के मुददों की वजह से कभी भी मुखर नहीं हो सकी है। इसका खामियाजा शिक्षा और शिक्षक भुगत रहे हैं और सरकार और विभाग मौजा ही मौजा…।
उत्तर प्रदेश के दौर में शिक्षक राजनीति का खास रसूख होता था। शिक्षक नेताओं की बात में दम होता था और सरकार और विभाग अनदेखी करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद ऐसा कभी भी नहीं दिखा। दरअसल, उत्तराखंड में राजकीय शिक्षक संघ की राजनीति नाना प्रकार के मुददों की वजह से मुखर नहीं हो सकी।
इसकी सबसे बड़ी वजह एलटी और प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के स्रोत हैं। कोई कुछ भी कहे सच ये है कि शिक्षक इसमें अंदरखाने पूरी तरह से बंटे हुए हैं। परिणाम शिक्षक नेताओं के पास दो टूक बोलने के विकल्प बहुत कम बच जाते हैं। जो बोलते हैं वो फिरकों में फंस जाते हैं। चुनाव में इसका परिणाम भी भुगतते हैं।
शिक्षकों से चुने जाने वाले ब्लॉक और जिले के पदाधिकारी तो फिर भी कई मुददों पर मुखर रहते हैं। मगर, प्रदेश स्तर पर डेलीगेटस से चुने जाने वाले पदाधिकारियों के मुददों की एप्रोच में व्यापकता देखने को नहीं मिलती है। यहीं से राजकीय शिक्षक संघ की राजनीति कमजोर पड़ने लगती है।
रही सही कसर देहरादून में शिक्षक राजनीति में शुद्ध राजनीति के छींटों ने पूरी करके रख दी है। शिक्षकों की कथित मांगों, मांगों के माने जाने, आश्वासन मिलने समेत तमाम बातें फाइब्रिकेट होने के आरोप भी आम हो गए हैं। शिक्षकों के मुददां को फंसाने और मांगों को उलझाने के तौर तरीकों का जनरेशन कहां से होता है ये बात अब मुंहफट शिक्षक सोशल मीडिया में बता देते हैं।
इस बहाने राजकीय शिक्षक संघ में इतनी राजनीति हो गई है कि इसका खामियाजा कहीं न कहीं शिक्षा और शिक्षक भुगत रहे हैं और सरकार और विभाग की मौजा ही मौजा। ऐसी तमाम राजनीति में एक ही बात अभिष्ट है कि शिक्षक प्रभावित हो रहे हैं। कैडर के प्रमोशन के पद वॉश हो रहे हैं। कभी सीधी भर्ती तो कभी एडॉक की बातें उड़ाई जा रही हैं। ऐसा सिर्फ कमजोर होती शिक्षक राजनीति की वजह से हो रहा है।