छात्र राजनीति में छात्राओं की बढ़ रही रूचि

छात्र राजनीति में छात्राओं की बढ़ रही रूचि
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सुदीप पंचभैया ।

यूनिवर्सिटी और कॉलेज कैंपस में छात्र राजनीति तेजी से बदल रही है। अच्छी बात ये है कि छात्राएं इसमें रूचि दिखा रही हैं। कई महत्वपूर्ण पदों पर निर्विरोध निर्वाचन जरूर जागरूकता के इस मंच को लेकर चिंता बढ़ाता है।

उत्तराखंड राज्य के यूनिवर्सिटी और कॉलेज कैंपस के छात्र संघ चुनाव संपन्न हो गए हैं। करीब तीन साल बाद हुए छात्र संघ चुनाव में इस बार कई परिवर्तन देखने को मिले। इसमें कुछ परिवर्तन भरोसा जगातें हैं तो कुछ परिवर्तन छात्रों के इस मंच को लेकर चिंता पैदा करते हैं।

छात्र संघ की राजनीति में छात्राओं की बढ़ी रूचि उत्साह पैदा करती है। श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की पहली छात्र संघ अध्यक्ष छात्रा बनीं। साक्षी तिवारी विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर की छात्र संघ अध्यक्ष निर्वाचित हुई। गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, मींग नारायणबगड़ में रिया छात्र संघ अध्यक्ष बनीं।

छात्र संघ के छात्राओं के लिए आरक्षित पद के अलावा महत्वपूर्ण पदों यानि महासचिव और यूआर जैसे पदों पर भी बड़ी संख्या में बेटियां चुनाव जीतकर आई हैं। इसे अच्छा संकेत माना जा रहा है। ये कॉलेज कैंपस में सकारात्मक राजनीतिक का सूत्रपात साबित होगा। छात्र राजनीति हो हल्ले से आगे बढ़ेगी।

छात्रों की जागरूकता के इस मंच पर चिंता भी दिखती है। छात्र संघ के कई पदों पर निर्विरोध निर्वाचन चिंता में डालता है। ऋषिकेश जैसे घनघोर राजनीतिक शहर के कॉलेज परिसर में महासचिव पर निर्विरोध निर्वाचन हुआ। ऐसा ही अन्य पदों पर भी हुआ।

राज्य के दर्जनों डिग्री और पीजी कॉलेजों के छात्र संघ चुनाव के परिणाम में देखा जा सकता है कि कई महत्वपूर्ण पदों पर बैलेट का उपयोग ही नहीं हुआ। इससे जागरूकता को लेकर सवाल उठ रहा है। सवाल उठ रहा है कि क्या छात्र संघ की राजनीति को लेकर आम छात्र/छात्राओं का मोहभंग हो रहा है। क्या छात्र राजनीति भी उसी प्रकार की समझौतावादी खोल में घिर गई है जैसे छोटी-बड़ी सरकारों में दिखता है। इससे रेडीमेड छात्र राजनीति की आशंका पैदा होने लगी है। ये देश में युवा नेतृत्व की धार का कुंद करने वाला साबित हो सकता है। 

सवाल ये भी है कि क्या छात्र राजनीति अब पूरी तरह से राजनीतिक दलों को आउट साइड चैंपियनों के द्वारा हांकी जा रही है। इसके भी संकेत इन चुनावों में देखने को मिले। सांसद, विधायकों को चैलेंज करने वाली छात्र राजनीति अब नहीं दिख रही है।

चुनाव में आम सभा का न होना छात्र संघ के साथ और बड़ा दुर्भाग्य जुड़ गया है। मतदान से एक दिन पहले जनरल गेदरिंग छात्र नेताओं को ज्ञान, जानकारी को परखने का अच्छा माध्यम होता है। मगर, अब कॉलेजों में ऐसा नहीं दिखता। परिणाम सुनी सुनाई और पोस्टर-बैनर में फोटो देखकर, शहरों में राजनीतिक दलों द्वारा बनाए जाने वाले माहौल से छात्र संघ आकार ले रहा है।

 

Tirth Chetna

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