राज्य शिक्षा बोर्ड में नहीं रही अब कोई विशेषता
ऋषिकेश। राज्य शिक्षा बोर्ड सीबीएसई के अंधानुकरण से अपनी तमाम विशिष्टता खो चुके हैं। विषयों की व्यापकता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसका असर भी दिखने लगा है।
उत्तराखंड कभी विश्व के सबसे बड़े स्कूली शिक्षा बोर्ड में शामिल उत्तर प्रदेश स्कूली शिक्षा बोर्ड का हिस्सा हुआ करता था। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड का अपना अलग शिक्षा बोर्ड बन गया। उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड समेत देश के तमाम राज्यों के शिक्षा बोर्ड पर सीबीएसई की छाया साफ-साफ देखी जा सकती है।
ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा की सीबीएसई के अंधानुकरण से राज्य शिक्षा बोर्ड अपनी विशिष्टता खो चुके हैं। जरूरतों पर आधारित विशिष्टता के लिए भी स्पेस नहीं रह गया है। उत्तराखंड तो पूरी तरह से सीबीएसई होने को मचल रहा है। जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्रों में केंद्रीय विद्यालय खुलवा रहे हैं और राज्य सरकार अपने स्कूलों को केंद्रीय विद्यालय संगठन को सौंप रही है।
परिणाम स्कूली शिक्षा व्यवस्था में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। तेजी से व्यवस्थाओं में एकरूपता समाप्त हो रही है। विभाग के कार्यों में भी इसकी झलक साफ-साफ देखी जा सकती है। इस भिन्नता का असर कुछ साल बाद देखने को मिलेगा।
बहरहाल, राज्य शिक्षा बोर्ड में विषयों की व्यापकता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। ऐसा लग रहा है कि नो डिटेंशन के अभ्यस्त हो चुके नौनिहालों को हर हाल में प्रमोट करने की गरज से ऐसा किया जा रहा है।
तमाम राज्य सरकारों को ऐसा इसलिए पसंद आया कि इसमें वर्क लोड कम हुआ। वर्क लोड कम हुआ तो शिक्षकों के पद समाप्त हुए। यानि शिक्षा पर खर्च कम हुआ। वैकल्पिक विषयों की भरमार हो गई है। अब धीरे-धीरे व्यावसायिक शिक्षा का पुट भी दिया जा रहा है। ये अच्छी बात है। मगर, लागू की गई व्यवस्थाओं की समीक्षा न होने से व्यवस्थाएं और गड़बड़ा रही हैं।
गड़बड़ाई व्यवस्थाओं पर कम्यूनिटी का ध्यान न जाए इसके लिए शिक्षा में प्रयोगों का सहारा लिया जा रहा है। राज्य शिक्षा बोर्ड में सीबीएसई जैसी व्यवस्थाएं विशुद्ध रूप से प्रयोग है।