श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालयः 11 सालों में एक परिसर चलाने की स्थिति में नहीं

ऋषिकेश। सरकार श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के साथ मजाक कर रही है या श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के साथ। इन दोनों में मजाक उभयनिष्ट है। यानि मजाक हो रहा है।
स्थापना के 11 सालों के बाद भी श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय एक परिसर चलाने की हैसियत प्राप्त नहीं कर सका है। विश्वविद्यालय का ऋषिकेश परिसर इस बात का प्रमाण है। यहां विज्ञान संकाय के अधिकांश पीजी स्तर के विभाग बगैर लैब सहायक और लैब परिचारक के चल रहे हैं।
छात्रों के प्रैक्टिकल पूरी तरह से बंद हैं। परीक्षा कैसे हुई होगी समझा जा सकता है। कोई लिहाज के कारण तो कई नौकरी के चक्कर में कुछ बोल नहीं रहा है। कोई पदों से भारी हो गया है तो कोई कभी त आला दिन के माइंडसेट बना चुका है।
विश्वविद्यालय परिसर को अपनी उपलब्धि बताने वाला पॉलिटिकल क्लास यहां झांकने तक को तैयार नहीं है। छात्र/छात्राएं को न जाने कैसे ऑल इज वेल लग रहा है। बात कॉलेज की चारदीवारी के अंदर कैद है। ऑटोनोमस कॉलेज के दौर में उच्च शिक्षा को लेकर दिखने वाली संजीदगी दूर-दूर तक नहीं है।
सरकार ने 11 सालों में विश्वविद्यालय को तीन कुलपति दिए। प्रत्येक कुलपति ने अपने कार्यकाल में एक दीक्षांत समारोह जरूर कराया। इसे विश्वविद्यालय की उपलब्धि माना जा सकता है। हां, हर कुलपति ने अपने मूवमेंट और बातचीत में ऐसा साबित करने का प्रयास किया कि वो विश्वविद्यालय की मजबूत नींव रख रहे हैं।
एक कुलपति ने ऋषिकेश परिसर के ऐलान के वक्त विश्वविद्यालय के पास खाजने का जिक्र किया। कहा कि चुटकी में परिसर को चकाचक कर देंगे। पैसे की कोई कमी नहीं है। इन शब्दों को कहने के बाद कुलपति पूर्व भी हो गए। नए कुलपति ने परिसर पर धेला खर्च नहीं किया। अब विश्वविद्यालय में मितव्यता की बात का प्रमोट किया जा रहा है।
कुल मिलाकर विश्वविद्यालय के साथ और विश्वविद्यालय के स्तर से मजाक हो रहा है। इसका खामियाजा नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है।