श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के साथ हो रहा संस्थागत मजाक

श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के साथ हो रहा संस्थागत मजाक
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ऋषिकेश। श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के साथ संस्थागत मजाक हो रहा है। 10 सालों में आशातीत विकास न होना इस बात का प्रमाण है। आगे भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। वित्तीय मान्यता वाले कॉलेजों में पद सृजित करने के मामले में मेरबान सरकार की नजरें विश्वविद्यालय पर इनायत नहीं हो रही है। दरअसल, विश्वविद्यालय सबका है और कॉलेज किसी-किसी के हैं। परिणाम लाभ किसी-किसी को ही मिल पा रहा है।

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद राज्य सरकार ने कॉलेजों की संबद्धता हेतु 2012 में श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित किया। टिहरी जिले के बादशाही थौल का इसका मुख्यालय बनाया गया।

स्थापना के बाद उम्मीद थी कि श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय जल्द ही गढ़वाल विश्वविद्यालय की कमी को दूर कर देगा। मगर, 10 सालों में विश्वविद्यालय खास तरक्की नहीं कर सका। कहा जा सकता है कि विश्वविद्यालय 10 सालों में अपने पैरों पर खड़ा होना तो दूर  घूटनों के सहारे भी नहीं चल पा रहा है। दरअसल, विश्वविद्यालय के साथ संस्थागत मजाक हो रहा है।

सरकार ने 10 साल में तीन कुलपति समय से विश्वविद्यालय को दिए। इसके अलावा दो स्थायी कर्मचारी दिए। कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक सब कामचलाउ व्यवस्था के तहत हैं। 54 सरकारी और 114 निजी कॉलेज/संस्थानों की परीक्षा, मान्यता समेत तमाम व्यवस्थाएं विश्वविद्यालय कैसे कर रहा होगा समझा जा सकता है।

स्पष्ट है कि श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के साथ सरकार मजाक कर रही है। सरकार की उपेक्षा के चलते विश्वविद्यालय सही से आकार नहीं ले पा रहा है। विश्वविद्यालय का ऋषिकेश परिसर को लेकर राजनीतिक व्यवस्था ने लोगों को जो सब्जबाग दिखाए उससे लोग अब स्वयं का ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

ऋषिकेश से ऑटोनोमस कॉलेज छीनने वाले अब कैंपस की बेहतरी की एडवोकेसी करते वक्त नदारद हैं। हैरानगी की बात ये है बात-बात पर मीडिया ट्रायल करने, आंदोलन की चेतावनी देने वाले कैंपस का आशातीत विकास न होने पर चुप्पी साधे हुए हैं।

विश्वविद्यालय कैंपस जैसी सजीवता दूर-दूर तक नहीं दिख रही है। शिक्षण से संबंधित बड़े-बड़े प्लान फाइलों में ही हैं। काम होता दिखता रहे इसके प्रचलित टैक्टिसों का उपयोग हो रहा है। कॉलेज को ऑटोनोमी दिलाने के लिए रात दिन एक करने वाले प्राध्यापक ये देखकर जरूर परेशान हो रहे होंगे।

आज स्थिति ये हो गई कि परिसर की लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन नहीं है। तमाम काउंटर पर कर्मचारियों का अभाव है। नए शिक्षा सत्र में परिसर के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। अंदर से सुधार हेतु आवाज उठे इस बात की उम्मीद कम ही है।

Tirth Chetna

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