आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान संपदा पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान संपदा पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
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श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय

तीर्थ चेतना न्यूज

ऋषिकेश। श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान सम्पदा“ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हो गई। संगोष्ठी में शिक्षाविदों भारतीय प्राच्य ज्ञान को आज के संदर्भ में विभिन्न तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया।

श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय द्वारा ”एक विश्वविद्यालय एक विषय“ के अन्तर्गत ऋषिकेश परिसर में स्थापित भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के बैनर तले आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी सफल रही। संगोष्ठी में देश विदेश के विषय-विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों द्वारा बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया।

संगोष्ठी का उदघाटन गढ़वाल एवं कुमांऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बीएस राजपूत ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत भूमि के विद्वानों के अविष्कृृत विचारों और आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिक का मूल आधार को दृृढ़ करने में अभूतपूर्व योगदान रहा है। बताया कि उपनिषद् ज्ञान काण्ड है जिसमे आध्यात्मिक जीवन का प्रतिपादन किया गया है।

मनुष्य को कैसे कर्म करने चाहिए इसका उल्लेख उपनिषदों से प्राप्त होता है। प्राचीन वेदों और अन्य शास्त्रों में चिकित्सा प्रणाली का उल्लेख किया गया है। चरक साहित्य और सुश्रूत साहित्य जड़ी बूटियों के साहित्य के मुख्य परम्पारिक संग्रह है। भारतीय ज्ञान, विरासत, परम्परा एवं शिक्षण पद्वतियों के सनातन मूल्यों को आधुनिक शैक्षिक पद्वति व व्यवस्था में अभिसंचित करना है।

विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 दिनेश चन्द्र शास्त्री ने कहा कि भारत ही विश्व में ऐसा देश नहीं है जहाँ आप शान्ति से रह सकें। चाणक्य ने इस भूमि को चक्रवर्ती भूमि कहा है। प्राचीन काल से ही हमारा देश उच्च माननीय मूल्यों एवं विशिष्ट वैज्ञानिक परम्पराओं का देश रहा है। भारत की संस्कृति ने विश्व को एक परिवार के रूप में माना है। प्राचीन भारत में दर्शन, अनुष्ठान, व्याकरण, खगोल विज्ञान, अर्थशास्त्र, संख्या सिद्वांत, तर्क, जीवन विज्ञान, आर्युवेद, ज्यौतिष जैसे मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर मानव जाति की उन्नति में अत्यधिक योगदान दिया है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एनके जोशी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्रीय आधार के रूप में शामिल किया गया है। उन्होंने शिक्षा के उददेश्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय पुरातन ज्ञान इसी धारणा पर अवलंबित है। छान्दोग्योपनिषद में चिकित्सा विज्ञान, धातु विज्ञान, कृषि विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, संगीत नाट्य .वेद, कर्मकांड के साथ-साथ बहुविध जीवनोपयोगी तकनीकी एवं व्यावसायिक सैंतीस और विषयों की चर्चा है।

उन्होने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म एवं कर्म का विलक्षण समन्वय है। इन्हीं बिन्दुओं पर गहन चिंतन और मनन करने तथा भारतीय ज्ञान संपदा को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए आज हम सब यहां एकत्र हुए हैं। इस संगोष्ठी में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद, गणित, पर्यावरण, कृषि, अर्थशास्त्र, धर्मग्रंथ, दर्शन, पारंपरिक भारतीय विज्ञान, वैमानिकी, वैदिक मंत्रों के अनुगूँज आधारित प्रभाव, खगोल, वास्तुशिल्प, भौतिकी, साहित्य, वेद, वेदांग, ज्योतिष, भूगोल, क्लोन निर्माण, वस्त्र विज्ञान, समाधि विज्ञान इत्यादि पर विचार-विमर्श होगा।

परिसर के निदेशक प्रो. एमएस रावत द्वारा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, शोध केन्द्रो से संगोष्ठी में पधारे अतिथियों का स्वागत किया गया। तत्पश्चात की-नोट स्पीकर एवं नमांमि गंगे योजना के सलाहकार केन कोसीबा (यू0एस0ए0) ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा भारतीय लोग आज भी अपनी परम्परा और मुल्यो को बनाये हुए है। विभिन्न सांस्कृतिक और परम्परा के लोगों के बीच घनिष्ठता ने भारत देश को बनाया है। आज इसलिये हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र एवं योग की त्रिवेणी है। भारतीय ज्ञान परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है इस ज्ञान परम्परा मे आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अभूतपूर्व खजाना है।

यू सर्क की निदेशक डा० अनिता रावत ने ऑनलाइन माध्यम से संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु शुभकामनाए प्रेषित की। श्री देव सुमन भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र द्वारा दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन सत्र परिसर के कांन्फ्रेस हाल मे हुआ।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि उत्तराखन्ड आयुर्वेदिक वि० वि० के कुलपति प्रो० अरुण कुमार त्रिपाठी थे एवं सत्र की अध्यक्षता श्रीदेव सुमन उत्तराखण्ड वि०वि० के माननीय कुलपति प्रो० एन० के० जोशी जी ने की। 

परिसर के निदेशक प्रो० महावीर सिंह रावत ने सभी प्रतिभागियों एवं मुख्य अतिथि एवं मा० कुलपति प्रो० एन० के जोशी जी का स्वागत किया।अध्यक्षीय भाषण में प्रो० जोशी ने संगोष्ठी के आयोजन पर प्रशन्नता व्यक्त की।उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में प्रस्तुत सभी शोध पत्रों को संकलित किया जाय तथा आयोजन समिति को सोवीनियर प्रकाशित करने के लिए अपनी अनुमति प्रदान की।

उन्होंने एक राज्य एक शोध के बारे में विस्तृत चर्चा की।मुख्य अतिथि प्रो० अरुण कुमार त्रिपाठी जी ने परम्परागत ज्ञान को मानव कल्याण के लिए उपयोगी बताया।संगोष्ठी में 228 प्रतिभागी समिलित हुए तथा 228 शोध पत्रों का 11 सत्रों में प्रस्तुतीकरण हुआ।

भारतीय ज्ञान पंरम्परा केन्द्र की निदेशक प्रो० कल्पना पंत ने समिति के समस्त सदस्यों सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होने कहा कि जो साथ चला उस प्रत्येक को धन्यवाद तथा भारतीय ज्ञान परंपरा उत्कृष्टता केंद्र का ध्येय सदैव से यही रहा है कि भारतीय ज्ञान परम्परा को न केवल संरक्षित होना चाहिए अपितु उसे विश्व मंच पर भी मान्यता मिले क्योंकि यह परंपरा विश्वबंधुत्व की भावना को लेकर चलती है।

उन्होने आयोजन समिति की तरफ से कुलपति का आभार व्यक्त करते हुये कहा कि वे इस आयोजन के प्रेरणास्रोत हैं ।एवं कैम्पस निदेशक सहित सभी प्राध्यापकों तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।सत्र का संचालन प्रो० पूनम पाठक द्वारा किया गया।

संगोष्ठी में संगोष्ठी में श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के मध्य शोध एवं शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु समझौता ज्ञापन (एमओयू ) हस्ताक्षर किए गए। चार टैक्नीकल सेशन में संपन्न हुई संगोष्ठी के प्रत्येक टैक्नीकल सेशन के सापेक्ष में चार सेशन आयोजित किये गए।

इस अवसर पर पर विज्ञान संकाय अध्यक्ष प्रो0 गुलशन कुमार ढ़िंगरा, कला संकाल अध्यक्ष प्रो0 डी0सी0 गोस्वामी, वाणिज्य संकाय अध्यक्ष प्रो0 कंचन लता सिन्हा ,एफडीसी की निदेशक प्रो. अनीता तोमर प्रो0 संगीता मिश्रा, प्रो० स्मिता बडोला,प्रो० अधीर कुमार,अकादमिक सचिव डा० गौरव वैष्णव,डा० पुष्कर गौड प्रो0 मनोज यादव,प्रो.दिनेश शर्मा, प्रो0 एस0पी0 सती डॉ0 शिखा ममगांई, , प्रो0 अटल बिहारी त्रिपाठी,डा० अशोक कुमार,डा० वी०पी० बहुगुणा,प्रो० नवीन शर्मा प्रो० सुरमान आर्य,प्रो० आशीष शर्मा,प्रो० परवेज अहमद,प्रो०नीता जोशी,प्रो० डी० एम० त्रिपाठी,प्रो० वी०डी० पाण्डे,प्रो० दुबे,डा० शालिनी रावत,डा० प्रीति खण्डूरी,डा० एस०के० कुडियाल,डा० राकेश जोशी ,एवं डा० श्रीकृष्ण नौटियाल उपस्थित थे।

Tirth Chetna

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