सामाजिक न्याय और डॉ भीमराव अम्बेडकर

सामाजिक न्याय और डॉ भीमराव अम्बेडकर
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डा. राखी पंचोला।
स्वतन्त्रता और समानता प्रत्येक मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। मानव रुप में भी अगर यदि व्यक्ति स्वतन्त्रता और समानता की अनुभूति न कर पाये तो उसका जीवन व्यर्थ है। सामाजिक न्याय का अर्थ है कि मानव के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाय प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्तियों के उचित विकास के समान अवसर उपलब्ध हों। किसी भी व्यक्ति का किसी भी रुप में शोषण न हो,समाज के प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो।लिंग,वर्ण,जाति,धर्म व स्थान के आधार पर भेदभाव न किया जाय तथा प्रत्येक व्यक्ति को आत्मविष्वास के सभी अवसर सुलभ कराएं जाए।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 38 में कहा गया है कि सामाजिक न्याय एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय राश्टीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करें। सामाजिक न्याय से अवसर और सम्मान की समानता सुनिष्चित होती है। सत्ता संपत्ति और सम्मान में बराबरी का हिस्सा ही सामाजिक न्याय है।

सशक्त भारत के निर्माण की आधारशिला सामाजिक न्याय के बिना नहीं रखी जा सकती। वर्तमान सामाजिक न्याय की राजनीति दरअसल जाति प्रतिनिधित्व की राजनीति बनकर रह गयी है। आज दलित और पिछडे़ समाज का युवा पहचान के साथ बुनियादी शिक्षा और नौकरी के साथ. साथ दूसरे बडे सपने भी देख रहा है। वास्तव में इन युवाओं को यह दृश्टि डॉ भीमराव अम्बेडकर की देन है।उनके प्रयासों से ही दलित, पिछडा,वनवासी युवा आज यह सपना देख पाया है।

आंबेडकर आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतक, बुद्धिजीवी,मानवतावादी दलितों केमसीहा तथा सामाजिक न्याय के संघर्शषील योद्धा थे। सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संविधान के शिल्पी के रुप में उन्हें जाना जाता है। भारत में सामाजिक न्याय केचिंतक के रुप में डॉ. अम्बेडकर को स्वीकार किया जाता है। इनके सामाजिक न्यायके सिद्धान्त पर जॉन रावल्स के न्याय के सिद्धान्त का प्रभाव है।

अम्बेडकर की समतावादी न्याय की संकल्पना समाज के वंचित लोगों के फायदे के लिए असमान बर्ताव यानि सकारात्मक भेदभाव की अनुमति देती है।यह धारणा जॉन रॉवल्स के निश्पक्षता के रुप में न्याय से मेल खाती है। वह अधिकारों और कानूनों को न्याय की कुंजी के रुप में स्वीकार करते थे। जाति व्यवस्था,सांप्रदायिकता,पितृसत्ता,श्रमिकों का शोषण एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में सबसे बडे अवरोधक थे।

डा. अम्बेडकर का मानना था कि राजनीतिक और आर्थिक पुनर्निमाण से पहले समाज का पुनर्निमाण होना जरुरी है क्योंकि सामाजिक न्याय ही राजनीतिक आर्थिक न्याय का मार्गखोलेगा। किन्तु आजादी के इतने वर्ष बाद भी ये संभव नहीं हो पाया। क्योंकि सदियों की बुराईयां वर्षों में नहीं जा सकती।

कोलम्बिया विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने समानता के व्यवहार का अनुभव किया जो भारत मे उनके लिए वर्जित था। अब्राहम लिंकन तथा वाशिंगटन के विचारों का भी उन पर गहरा प्रभाव पडा। वह कबीर की भक्ति, फुले के समाज सुधार तथा साबू महाराज के ब्रह्नमणवाद के विरुद्ध संघर्ष से भी प्रभावित थे। आंबेडकर की विचारधारा पर लोकतंत्र,समानता,स्वतन्त्रता तथा भातृत्व के पाश्चात्य विचारों का प्रभाव था।

अपने अमरीकी प्रवास के दौरान वह रंगभेद की नीति का विरोध करने वाले14वें संषोधन से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। इससे उनको दलितों के उद्धार करने हेतु संघर्श की प्रेरणा मिली दलितों वंचितो को स्वतन्त्र जीवन यापन हेतु सक्षम बनाने में मनुस्मृति नहीं बल्कि संवैधानिक सुरक्षा के उपाय सिद्ध हांगे। आंबेडकर की पुस्तकें जाति प्रथा का उन्मूलन, शूद्र कौन थे तथा अस्पर्श जातियां सामाजिक न्याय की दिशा में उनका महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है।

अम्बेडकर के प्रयासों से जैसा भारतीय संविधान सामने आया उसे सामाजिक न्याय का दस्तावेज कह सकते हैं। हालांकि संविधान के प्रावधान ढंग से लागू नहीं हुए नहीं तो बात कुछ आगे बढ़ती है। वर्तमान में जो सामाजिक न्याय की राजनीति पहचान की राजनीति तक सीमित रह गयी है वह अगले चरण में प्रवेश करती। वह एक समरस,प्रगतिशील, लोकतांत्रिक, समतामूलक और आधुनिक भारत चाहते थे, जहॉ सभी को प्रतिष्ठा और अवसर की समानता,सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय और व्यक्ति की गरिमा के लिए पर्याप्त स्थान हो।

सामाजिक न्याय के लिए भारतीय संविधान में कुछ प्रावधान हैं जिनके आधार पर भारतीय समाज में सामाजिक न्याय को लागू करने का एक सपना देखा गया है। यह इस बात को भी मानता है कि समान अवसर का मतलब समान के बीच प्रतिस्पर्धा है न कि असमान के मामले मे ऐसा है। भारत की सामाजिक संरचना में असमानता को ध्यान में रखने में संविधान के निर्माताओं की दलील थी कि कमजोर तबकों को राज्य द्वारा प्राथमिकता के आधार पर सुविधाएं देनी होंगी। अतः समाज के कमजोर तबकों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए राज्य पर विशेष जिम्मेदारी सौंपी गयी है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि डा. अम्बेडकर इस सदी के विचारक हैं। दादा भाई नैरोजी, महादेव रनाडे तथा गोपाल कृष्ण गोखले जैसे उदारपंथियों की तरह उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता की अपेक्षा सामाजिक सुधारों को प्राथमिकता दी। संविधान सभा के सदस्यों द्वारा उनको आधुनिक मनु के नाम से पुकार गया था।

वास्तव में उनके प्रयासों से ही आज भारतीय समाज का दलित वर्ग, श्रमिक वर्ग, महिलाएं सम्मानजनक जीवन जी पा रहे हैं। भारत रत्न डा. अम्बेडकर के सामाजिक न्याय के विचार मानव समाज के लिए हमेशा प्रभावकारी रहेंगे एवं डा. अम्बेडकर की प्रासंगिकता बनीं रहेगी।
लेखिका उच्च शिक्षा में प्राध्यापिका हैं।

Tirth Chetna

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