शिवानी की रचनाओं का सम्मोहन
प्रो. कल्पना पंत
इस समय माता- पिता के साथ उनके पुश्तैनी घर में हूं। यहां घर के बैठकखाने में मौजूद किताबों की अल्मारियों में आज भी वहआकर्षण अपनी ओर खींचता है जिसने बचपन से ही हमें एक अद्भुत दुनिया की सैर करानी प्रारंभ कर दी थी। माइका वल्तारी, मार्क ट्वेन,पर्ल एस बक, मानव इतिहास, रूसी साहित्य से लेकर समाज, संस्कृति, विज्ञान ग्रंथों के अथाह समुद्र की गहराई नापने का अवसर दिया।
शरत, रवींद्र, ताराशंकर वंदोपाध्याय, बंकिम इनको हमने वहीं पढ़ा. शिवानी के उपन्यासों और कहानियों ने भी यहीं हमें अपनी गिरफ्त मे लिया और इस तरह सम्मोहन में बांध लिया कि की शिवानी के पात्रों का रोमान , उनकी पीड़ा, उनका विद्रोह ,आत्मस्म्मान अन्तर्मन तक उतर आया।
यहां तक की झील के किनारे चलते शिवानी की नायिकाएं नजर आती थीं। बस को देखकर चौदह फेरे का सुन्दरी बस को विरूपित करने वाला संवाद मन में तैरने लगता था. किसी जर्जर पुराने पर्वतीय घर को देखकर ’श्मशान चंपा’ की चंपा के ननिहाल का जीर्ण मकान मन में तैरने लगता था. भवाली जाते ही सेनिटोरियम का वर्णन मन में कौंध जाता था।
बहुत बाद तक ट्रेन यात्रा करने में भोजन सामग्री को मनोयोग से खोलती स्त्री मदालसा सी लगती थी। कुष्ठ रोग या यक्ष्मा से ग्रस्त व्यक्ति उनक उपन्यासों का पात्र नजर आने लगता था. तात्कालिक सामाजिक दशा का परिचय भी उनके उपन्यासों और कहानियों में मिलता है. उन्होंने कुमाउं के अभिजात वर्ग को अपने साहित्य में उकेरा है रवींद्र और शांतिनिकेतन का प्रभाव उनकी भाषा में अपूर्व लालित्य ले आया है।
आखिर क्या है उनकी लेखनी में जो पाठक उनकी एक अदम्य आकर्षण के वशीभूत होकर खिंचा चला जाता है। उनकी नायिकाएं विलक्षण हैं, दुस्साहसी , लेकिन बाहर से दिखने में मॄदुल ,कोमल लेकिन भीतर से अदम्य साहस से भरी हुई , निर्वात में जलती निष्कम्प दीपशिखा सी, दुर्भाग्य और दुर्याेग का गहन अंधकार भी जिनकी जीवनीशक्ति को न निचोड पाया हो।
उनकी रचनाएं मुख्यतया स्त्री प्रधान है। चौदह फेरे की अहिल्या का अपूर्व व्यक्तित्व,अतिथि की जया का आत्मसम्मान . सुरंगमा के आंतरिक और बाह्य संघर्ष, श्मशान चंपा की नायिका का दुर्भाग्य, भैरवी की नायिका के जीवन का उलटफेर, हीरे की दगदगाती कनियां सी मालती ,स्वयंद्धा कालिंदी के व्यक्तित्व में निहित आधुनिकता व परम्परा का द्वन्द्व इत्यादि।
लल हवेली की ताहिरा का अपने अतीत से साक्षात्कार, पिटी हुई गोट की चंदा की नियति , सौत की नीरा की प्रतिवेशिनी का आघात अनोखा संसार रचते हैं। उनकी रचनाओं की निर्झर सी भाषा अपने सौंदर्य की ओर बरबस खींच लेती है। बांग्ला .संस्कृत के रम्य उद्धरणों के साथ प्रवाहित होती नदी की तरह मन के कूल किनारों को सिक्त करती चलती है।
पर्वतीय अंचल के सौंदर्य का विशेषतया अल्मोड़ा का परिवेश उसके आंचलिक सौंदर्य के साथ अत्यंत मनोहारी रूप में उभर कर आया है.कलकत्ता को शरत ,रविन्द्रनाथ के अतिरिक्त सबसे पहले शिवानी के उपन्यासों मे ही महसूस किया, आज भी इस लेख को लिखते समय चौड़ी लाल पाड़ की साड़ी पहने शिवानी द्वारा चित्रित अपरूप नायिका का आकर्षण अपनी ओर खींचता है।
देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों ने जिस तरह साहित्य पढ़ने का आकर्षण उत्पन्न किया ,शिवानी की रचनाओं ने अस्सी के दशक में
उपन्यास और कहानियों के प्रति एक तीव्र सम्मोहन जगाने का कार्य किया। यह सम्मोहन आज भी कायम है।