कितना मुश्किल है सिर्फ शिक्षक बना रहना
शिक्षक दिवस पर विशेष
सुदीप पंचभैया।
शिक्षक की पेशेगत चुनौतियां पिछले दो ढाई दशक में न केवल व्यापक हुई हैं बल्कि इतनी उलझ गई हैं कि शिक्षक शिक्षक न होकर बहुउपयोगी कार्मिक बन गया है। परिणाम वर्तमान शिक्षकों के सम्मुख सिर्फ शिक्षक बना रहना बहुत मुश्किल काम हो गया है। ये समाज और शिक्षा के हित में नहीं है।
आज शिक्षक दिवस है। छात्र/छात्रा समेत समाज शिक्षकों को शिक्षक दिवस की बधाई दे रहा है। इन बधाइयों के बीच शिक्षकों की चुनौतियों का कहीं जिक्र नहीं हो रहा है। स्कूली शिक्षा में शिक्षकों की चुनौतियों पिछले ढाई दशक में कई गुना बढ़ गई हैं। कॉलेज और विश्वविद्यालयों में भी यही हाल है। प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की चुनौतियां कुछ अलग तरह की हैं।
कहा जा सकता है कि आज के दौर में स्कूल/कॉलेज के शिक्षक के लिए सिर्फ शिक्षक ही बना रहना बड़ा मुश्किल है। सरकार की बुनियादी शिक्षा के केंद्र यानी राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक पर पढ़ाने के अलावा करीब दो दर्जन रजिस्टर को मेंटेन करने का जिम्मा होता है।
मिड-डे-मील का चौका-चूल्हा से लेकर नून-तेल का हिसाब भी उसी के सिर पर होता है। ड्रेस खरीद से लेकर भोजन माताओं के पारिश्रमिक और काम के देखरेख की जिम्मेदारी भी मास्साब की होती है। स्कूल में होने वाले किसी भी निर्माण में उसे इंजीनियर की जैसी दृष्टि भी चाहिए होती है। इस पर ऑडिट भी फेस करना होता है।
समय-समय पर तमाम जन जागरूकता कार्यक्रम के लिए नारे बनाने से लेकर रैली निकालने तक का जिम्मा भी शिक्षक पर होता है। शिक्षकांे पर लौटती डाक का दबाव तो इस कदर होता है कि इसके सामने उनका मूल कार्य गौण हो जाता है। लौटती डाक का हांका लगभग हर दिन लगता है।
शिक्षक को सेवित क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक संतुलन भी बनाना पड़ता है। पंच प्रधानों को सलाम बजाने में थोड़ी सी चूक उपर बताए गए सभी कार्यों पर पानी फेर देते हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि आज के दौर में स्कूलों में सिर्फ शिक्षक ही बना रहना बहुत मुश्किल काम है।
यही हाल माध्यमिक स्कूलों में भी है। यहां भले की लिपिक तैनात रहते हैं। मगर, लौटती डाक का दबाव यहां भी शिक्षकों पर ही अधिक होता है। उच्च शिक्षा में अब जिस प्रकार से हर दिन कोई न कोई कार्यक्रम हो रहा है उससे कक्षाएं प्रभावित हो रही हैं। स्कूल/ कॉलेजों में पढ़ाई से इत्तर कार्यों की अधिकता से उददेश्यों में भटकाव देखा जा रहा है।
हैरानगी की बात ये है कि अब सभी स्तर की शिक्षण संस्थाओं में कागजात फिट रखने की मन स्थिति बन गई है। इससे कहीं न कहीं शिक्षा का मूल उददेश्य प्रभावित हो रहे हैं।
सरकारी स्कूल और कॉलेजों के बारे में समाज में ये मन स्थिति बन चुकी है कि यहां पढ़ाई नहीं होती। क्यों नहीं होती, क्या है समस्या इस पर समाज गौर नहीं कर रहा है। शिक्षकों से कराए जा रहे इत्तर कार्य पर गौर करने की जरूरत है। शिक्षक सिर्फ शिक्षक ही रहे उसे बहुउपयोगी कार्मिक बनाने के प्रयास न किए जाएं। ताकि स्कूलों में नौनिहालों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सकें।