शिक्षा विभागः तदर्थ शिक्षकों से संबंधित शासनादेश पर उठ रहे सवाल

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1995 के शासनादेश में उत्तराखंड का जिक्र

तीर्थ चेतना न्यूज

देहरादून। तदर्थ प्रवक्ताओं/एलटी शिक्षकों के बारे में 21 नवंबर 1995 में जारी शासनादेश जांच के दायरे में आ गया है। बताया जा रहा है कि ये कथित शासनादेश सोशल मीडिया में तो है मगर, यूपी शासन मे लाख ढूंढने पर भी नहीं मिला।

दरअसल, ये शासनादेश 1990 से पूर्व तदर्थ तौर पर तैनात प्रवक्ताओं/एलटी शिक्षकों के विनियमितिकरण से संबंधित है। उक्त शासनदेश के मुताबिक इस श्रेणी के सभी शिक्षकों को एक अक्तूबर 1990 से विनयमित माना जाएगा।

इस शासनादेश में वर्णित बातों से शिक्षकों की वरिष्ठता को लेकर विवाद चल रहा है। विवाद को समाप्त करने के लिए जब उत्तराखंड शासन ने 21 नवंबर 1995 में जारी शासनादेश की खोज खबर करने के लिए टीम लखनउ भेजी तो टीम खाली हाथ लौट आई।

बताया जा रहा है कि वहां ऐसा कोई शासनादेश नहीं मिला। सोशल मीडिया में जो इस संबंध में जो शासनादेश है उसको लेकर वास्तव में संदेह पैदा हो रहा है।

शासनादेश में उत्तराखंड का जिक्र है। जबकि तब उत्तराखंड राज्य बना ही नहीं था। तब यूपी शासन के पत्राचार में पर्वतीय क्षेत्र का जिक्र होता था। इस तरह से सोशल मीडिया में दिख रहा ये शासनादेश जांच के दायरे में है।

हालांकि इससे संबंधित शिक्षकों के अपने तर्क हैं। उक्त शिक्षक समय-समय पर विभाग को संबंधिक अभिलेख उपलब्ध कराते रहे हैं। जानकार तर्क दे रहे हैं कि यूपी के समय पर्वतीय क्षेत्रों के लिए पत्राचार में उत्तराखंड/उत्तरांचल का जिक्र होता है। उत्तराखंड विकास विभाग के नाम से लखनउ में अलग से सचिवालय भी था। जिसे प्रमुख सचिव स्तर का अधिकारी लीड करता था।

Tirth Chetna

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