सयानी काकी की टक भी लगी विकास पर

सयानी काकी की टक भी लगी विकास पर
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राशन की थैली मुंड मा, घास की फुल्ली कमर मा और अनुभवों की बोदगी आंख्यूं मा रखने वाली सयाणी काकी ने अब विकास पर भी टक लगा दी है। पिछले साल तक विकास हो रहा, विकास हो रहा को ढंग से न कैच न कर सकने वाली सयाणी काकी ने अब हो रहे विकास पर टक लगाकर देखा और आपको आंखों देखी प्रस्तुत कर रही है।

“भागो भागो विकास आया और अपने साथ विनाश लाया। लोग विकास देख रहे हैं और कूड़ी-पुंगड़ी उद-उद (नीचे-नीचे खिसक रही है)। यानि तिमले के गिरने जैसे स्थिति है। वैसे तो उत्तराखंड ने हमेशा आपदाओं की त्रासदियों झेली है और झेल ही रहा है। जोशीमठ में मकानों में दरारें, भूमि का धसांव, मानव निर्मित आपदा के तहत जो भी चल रहा है उसे देखने सयानी काकी भी मौके पर पहुंच गई।

बोलने लगी है कांडा लगेन ये विकास पर। बगैर बिजली चमक्यां कन बज्र पड़ी। क्या कन। उत्तराखंड राज्य को बनाने में जिन भी लोगों ने किसी भी रूप में योगदान दिया होगा वो निश्चित रूप से निराश हैं। अब विकासजन्य आपदाएं उनके धैर्य की परीक्षा ले रही हैं। दरअसल राज्य चंट चकड़ैतों का होकर रह गया और आम लोग दादू मै पर्वतू को वासी गुनगुनाता रह गया।

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में इन्होने नज़र गड़ाई थी और देखते ही देखते  जैसे हमारा उत्तराखंड जवान होता गया इनकी गिद्ध नज़रें यहाँ के योवन को पूरी तरीके से लूट ले गयी. इससे पहले कि यहाँ की जनता को समझ आत्ता, कि ये विकास हो रहा है। लेकिन प्रकृति ने बार बार चेताना शुरू कर दिया कि ये विनाश हो रहा है. अगर जनता नहीं चेतेगी तो प्रकृति इनको बताने लगी कि मुझमे चीर फाड़ करने वालों, मेरे चीर हरण करने वालों मैं तुम्हे अपना रूप स्वयं दिखाउंगी.

आज हिमालयी जिलों में कई सारी कम्पनियां जो विभिन्न गतिविधियां जैसे डैम बनाना पॉवर प्रोजेक्ट बना रही हैं दृ चट्टानों को खोद रही हैं, – ये सभी अपना बोरिया बिस्तर लेकर भाग रहे हैं। उनका हर्जा भी क्या हुआ क्या उनका नुक्सान होने वाला है ?

कमाने वालों ने तो अरबो खरबों कमा लियेनुक्सान किसका हुआ ? उस पहाडी हिमालयी उत्तराखंडी जनता का जिन्होंने सच्चे मायने में आन्दोलन रत होकर दृ उनके परिवारों ने जिन्होंने इस उत्तराखंड को बनाया था. आज उत्तराखंड बहुत ही बुरी तरह से लुट रहा है. तमाम सारे सरकारी तंत्र में भी कई लोगकई कुर्सियों में बैठ कर इसको नोच दबोच के खा रहे है और लूट खसोट मचा रहे हैं. लेकिन हमारे ही जन प्रतिनिधि नुमाइंदे उनको सर पर बैठा कर नचा रहे हैं। क्योंकि सब जानते हैं कि उनको उससे क्या फायदा होने वाला है।

उत्तराखंडियों जिन्होंने उत्तराखंड राज्य बनाया है को एक बार फिर चेतना होगा चाहे वो मात्र शक्ति थी चाहे वो बच्चे थे चाहे वो बूढ़े थे जिस तरीके से उस वक्त सबने एक जुट होकर राज्य बनाया आज राज्य ललकार रहा हैइस राज्य के हिमालय ललकार रहे हैं की आओ सिर्फ पुरस्कार ना पाओ मेरे नाम पर बड़े बड़े पुरस्कार पाने वालों तुम्हे मेरी आबरू बचानी होगी और मुझे बचाना होगा – मेरा चीर हरण करने वाले मेरे को गिद्ध की तरह खोदने वालोंमुझे छीलने वालों को मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी और इसी तरीके से कही जोशीमठ से शुरुआत हो रही हो सभी पर्वतीय जिले इसी तरह से प्रकृति के कोप का शिकार न बन जाएं।

सनद रहे कि ये दरारें जोशीमठ से श्री बद्रीनाथ जी ने सिर्फ आइना दिखाया है दृ ये दरार न जाने कहाँ तक पहुँचेगी और कही ये पूरा भूगोल ही ना बदल दे – इन हिमालयी जिलों का। कहीं ये हिमालय से निकलने वाली नदियाँ इन दरारों में गायब ना हो जायें. फिर ना कहना कि सयानी काकी ने चेताया नहीं………

Tirth Chetna

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