प्रेमभक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग हैः सतगुरू माता सुदीक्षा

प्रेमभक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग हैः सतगुरू माता सुदीक्षा
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तीर्थ चेतना न्यूज

नई दिल्ली। मानव से प्रेम ही ईश्वर प्रेम है। प्रेमभक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग है। ये मार्ग भक्ति से होकर गुजरता है।

ये कहना है निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज का। माता सुदीक्षा शनिवार को ंत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा (हरियाणा) में 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में बोल रही थी। समागम में लाखों भक्तों ने प्रतिभाग किया।

इस मौके पर उन्होंने कहा कि संसार में विचरण करते हुए जब हम अपने सीमित दायरे से सोचते हैं तो केवल कुछ ही लोगों से रुबरु हो पाते हैं, किन्तु ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी से जब हम इस परमपिता परमात्मा संग जुड़ते है तब हम सही अर्थाे में सभी से प्रेम करने लगते हैं। यही प्रेमाभक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग है।

भक्ति की परिभाषा को एक नया दृष्टिकोण देते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि यदि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती। यही विचारधारा जब व्यापक रूप ले लेती है तो सबके प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना को जाग्रत करती है। आपने संतों के संग और ध्यान (सुमिरण) को आत्मा की गहराई से जोड़ने का सरल माध्यम बताया।

सतगुरु माता जी ने उदाहरण स्वरूप समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का सुंदर प्रतीक बताया। जिस प्रकार समुद्र अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए होता है फिर भी शांत अवस्था में रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए।

संत समागम का द्वितीय दिन सेवादल रैली को समर्पित है जिसका आयोजन भव्य रूप में हुआ। इस आकर्षक रैली में देश एवं दूर-देशों से आए हुए सेवादल के भाई एवं बहनों ने भाग लिया और मिशन की शिक्षाओं एवं आध्यात्मिकता पर आधारित लघु नाटिकायें प्रस्तुत की गईं। इस अवसर पर शारीरिक व्यायाम, खेलों एवं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति द्वारा प्रमुखता से निःस्वार्थ सेवा भाव को अभिव्यक्त किया गया।

सतगुरु माता जी ने सेवादल रैली में उपस्थित श्रद्धालुओं को सेवा, समर्पण और विनम्रता का दिव्य संदेश देते हुए कहा कि सेवा का भाव न केवल पवित्र है अपितु यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और अनुशासन का संुदर प्रतीक है। आपने समझाया कि सेवादल की वर्दी को केवल बाहरी आवरण न मानकर इसे अपने भीतर के अहंकार को मिटाने और सेवा-भाव को जागृत करने का माध्यम समझना है। सेवादल के सदस्य अपनी ड्यूटी निभाने के साथ-साथ घर-परिवार की जिम्मेदारियों का सामंजस्य करते हुए भी सेवा को निभाते है। यही तालमेल एक आदर्श जीवन का उत्तम उदाहरण है।

सेवादल रैली के दौरान प्रस्तुत नाटकों और संदेशों ने यह दर्शाया कि सेवा केवल कार्य नहीं अपितु यह एक दिव्य भावना है जो हमारे आचरण और शरीर की भाषा में झलकनी चाहिए। अंत में सतगुरु माता जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि प्रत्येक सदस्य में सेवा, सुमिरण और सत्संग का जज्बा निरंतर बढ़ता रहे और हमस ब अपने जीवन को निरंकार के प्रति समर्पित करते हुए समाज में अनुकरणीय योगदान दें।

Tirth Chetna

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