धारावाहिक उपन्यास:कौ सुवा काथ कौ
प्रो. कल्पना पंत।
प्रोफेसर चित्रा की आँखों में एक नई चमक थी। सरकारी सेवा में दशकों तक समर्पित रहकर विभिन्न स्थानों में स्थानांतरित होते हुए, नए-नए आशियाने बनाते, आज उनका जीवन एक नए अध्याय की ओर बढ़ रहा था। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा था । संघर्ष, विजय, और कई अधूरी इच्छाएँ। लेकिन आज उनके सामने वह अवसर था, जिसे उन्होंने हमेशा अपने सपनों में संजोया था। आज वह एक महाविद्यालय को विश्वविद्यालय का परिसर बनाए जाने के बाद प्रोफेसर के रूप में अपने कर्तव्य का आरंभ करने जा रही थीं।
सुबह का समय था, और हल्की सर्दी के बीच सूरज की कोमल किरणें उनकी खिड़की से छनकर कमरे में प्रवेश कर रही थीं। उनकी मेज पर कुछ कागज़ रखे थे सिलेबस की रूपरेखा, शोध परियोजनाएं और विद्यार्थियों से संवाद के विषय पर विचार। लेकिन इन कागज़ों के पार, उनके मन में अनगिनत विचार और स्वप्न उमड़ रहे थे।
चाय के कप में आखिरी घूँट लेते हुए उन्होंने खिड़की से बाहर देखा। सामने शहर की चहल-पहल और गगनचुंबी इमारतों की कतार थी। सड़क पर तेज़ी से दौड़ते हुए वाहन, उनके रास्ते में चलते लोग और दूर कहीं मेट्रो का शोर सुनाई दे रहा था। इस नगरीय माहौल के बीच, हवा में हल्की सी ताजगी थी, मानो शहर अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद एक पल के लिए शांति में डूबा हो।
यह स्थान, आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का सम्मिलन था। इसके चारों ओर शहरी रंग-रूप थे, लेकिन यहाँ से बहने वाली एक शांत नदी का दृश्य इस शहरी जीवन में भी एक विशेष प्रकार की शांति और सौंदर्य का प्रतीक था। नदी का पानी शहर की हलचल को नकारते हुए अपनी धीमी लहरों में एक विश्रामपूर्ण संदेश देता था।
आसपास के हरियाली से ढके क्षेत्र, और बीच से गुजरती नदीकृयह सब मिलकर इस संस्थान को शहरी व्यस्तता से अलग एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान कर रहे थे। उनके मन में विचार आया, यहीं पर विचारों की नई फसल बोई जाएगी, जहाँ शहरी व्यस्तता और शांतिपूर्ण शिक्षा का संगम होगा।
संस्थान के उद्घाटन समारोह की यादें अभी भी उनके दिलो-दिमाग में ताज़ा थीं। विद्वानों और शिक्षाविदों की सभा में शिक्षा के महत्व पर हुई गहन चर्चाओं ने उनके विचारों को और प्रबल किया था। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा था, शिक्षा केवल ज्ञान का संचय नहीं है, यह समाज और व्यक्तित्व को नया मार्गदर्शन देने का यंत्र है। इसी विश्वास के साथ वह यहाँ आई थीं।
अचानक उनका मन बचपन की यादों में खो गया। उनके पिता, जो स्वयं एक समर्पित शिक्षक थे, ने पहली बार कार्यभार को स्वीकार करतीं हुई पुत्री से कहा था , चित्रा, शिक्षक वह होता है जो अपने शिष्यों में स्वप्न बोता है और फिर उन्हें उस स्वप्न को साकार करने का रास्ता दिखाता है। आज भी ये शब्द उनके कानों में गूँज रहे थे।